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कहानी अधूरी फ़िल्मों की 23- एक चादर मैली सी पर आधारित ,गीता बाली और राजेंद्र सिंह बेदी ‘रानो’ बननी शुरू हुई पर वो मुर्त स्वरूप तक नहीं पहुंचा.


साथियों फिल्म इतिहास मे कई सपने अधूरे रह गये है.आज याद करते है गीता बाली और राजेंद्र सिंह बेदी के सपने ‘रानो’ की जो मुर्त स्वरूप तक नहीं पहुंचा.


राजेंद्र सिंह बेदी का प्रसिध्द उर्दू उपन्यास ‘ एक चादर मैली सी’ साहित्य अकादमी से पुरस्कृत पंजाब की ग्रामिण पृष्ठभूमि मे प्यार और दर्द की भावनाओं का सजिव चित्रण है. ये पंजाब के ग्रामीण परिवेश मे रहती एक महिला रानो की कहानी है जो अपने पती त्रिलोक और चार बच्चों के साथ रहती है.त्रिलोक जीवन-यापन के लिए तांगा चलाता है.एक विवाद मे त्रिलोक की हत्या हो जाती है.तत्कालिन रिती अनुसार उसे उसके देवर मंगल से विवाह करने विवश किया जाता है.मंगल उससे काफी कम उम्र का हैं और उसे रानो पुत्रवत मानती रही है. मंगल एक मुस्लिम युवती सलामत से प्यार करता है. इन परिस्थितियों से गुजरते पात्रों की भावनात्मक अवस्था को उपन्यास मर्मस्पर्शी रुप से उजागर करता है.
राजेंद्र सिंह बेदी साहित्यकार के साथ साथ फिल्म लेखन मे भी प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुके थे.वे ‘देवदास’,’अनुराधा’,’मुसाफिर ‘,’मधुमती’ ,’आस का पंछी’ जैसी फिल्मों के लेखन से जुडे थे. उन्होंने ‘ एक चादर मैली पर आधारित फिल्म ‘रानो’ से फिल्म निर्देशन के क्षेत्र मे प्रवेश करने का निश्चय किया.उनके अनुसार इस भुमिका के लिए केवल गीता बाली ही सर्वथा योग्य थी.शम्मी कपूर से विवाह और दो बच्चों के बाद गीता बाली फिल्मों से लगभग दूर हो चुकी थी.मगर इस किरदार को देखते हुए स्वयं शम्मी कपूर ने उन्हें येफिल्म स्विकारने का आग्रह किया. गीता बाली ने नायिका के साथ सहनिर्माता के रुप मे जुडने का निश्चय किया.उनके देवर की भुमिका मे युवा ‘पंजाब दा पुत्तर’ धर्मेंद्र आ गये.कहते है इस भुमिका के लिए तब संघर्षरत राजेश खन्ना के नाम पर भी विचार किया गया था. सलामत की भुमिका मीना राय को दी गई जो बाद मे पंजाबी फिल्मों की अभिनेत्री के रुप मे मशहूर हुई.
फिल्मांकन पंजाब के बंगा कसबे मे 1964 मे प्रारंभ हुआ. गीता बाली पुरी तरह से इस किरदार मे खो गई. इस भुमिका से समरस होने के लिए स्थानिय वेशभुषा, रहन सहन, भाषा इत्यादि को आत्मसात कर लिया. मगर अचानक वे चेचक ( Small pox) की चपेट मे आ गई और 21 जनवरी 1965 को मुंबई मे उनका देहावसान हो गया. इस प्रकार फिल्म का निर्माण रुक गया. कहते है राजेंद्र सिंह बेदी गीता बाली की मृत्यु स इतने आहत हुए की उन्होंने ने फिल्म की पटकथा को गीता बाली की चिता पर ही जला दिया.
कुछ वर्षो बाद दस्तक (1970) के साथ वे निर्देशक बने.दस्तक के लिए संजीव कुमार, रेहाना सुल्तान और संगीतकार मदन मोहन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सन्मानित हुए.
इस कथा को 1986 में निर्देशक सुखवंत ढढ्ढा ने ‘ एक चादर मैली सी ‘ शीर्षक से फिल्म का रुप दिया. फिल्म मे हेमा मालिनी ने केंद्रीय भुमिका निभाई. उनके पती की भुमिका मे कुलभुषण खरबंदा और देवर के रुप मे ऋषि कपूर थे.पुनम ढिल्लो सलामत के रोल मे नजर आई.

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