आज बात करते हैं एक बडे सपनों के सौदागर की, ओ. पी. रल्हन के अधुरे सपने की.
1948 में बंटवारे का दर्द सहकर मुंबई पहुंचे रल्हन ने कुछ निर्देशकों के सहायक के रुप मे काम किया. कहते हैं धनाभाव मे आई. एस. जौहर के लिए घोस्ट राईटर भी बने. अभिनेता बने.बहन का विवाह राजेन्द्र कुमार के साथ हुआ. शम्मी कपुर के साथ मुजरिम, राजेन्द्र के साथ गहरा दाग बनाई.धर्मेंद्र को लेकर फुल और पथ्थर बनाकर बडे निर्माता, निर्देशक के रुप मे स्थापित हो गए. धर्मेंद्र को हि मैन इमेज देने का श्रेय प्राप्त किया.फिल्म को भव्य बनाने का जुनून रखते हुए अगली फिल्म ‘तलाश’ को एक करोड़ रुपये खर्च कर बनाया एवम् प्रचारित किया. फिर नया कुछ करने की चाह मे गीत विहीन रहस्य फिल्म ‘हलचल’ बनाई. जीनत अमान और कबिर बेदी की यह प्रथम फिल्म थी. मनचाही सफलता ना मिलने पर भी नये कलाकार अमिताभ बच्चन को मुमताज के साथ लेकर बंधे हाथ, सितारों से सजी पापी बनाई.
इन फिल्मों के साथ साथ उनकी अपने सपने को संवारने की कोशिश जारी थी. उन्होंने भारतीय फिल्म इतिहास की सबसे भव्य फिल्म ‘ अशोका दी ग्रेट बनाने का ऐलान किया.
फिल्म के लिए नए नायक की खोज करने के लिए बडा अभियान शुरू किया.हर प्रतिभागी से सौ रुपये शुल्क लिया जो उस वक्त काफी ज्यादा था.दस लेखक, परामर्शदाता के साथ एम. एन. दास को पटकथा लेखन सौपा गया. 70एम एम मे बनने वाली इस फिल्म के अंग्रेजी संस्करण को लेखक Andrew Schincler लिखने वाले थे.क् फिल्म का निर्माण करने हेतु एक विशेष ‘अशोक सिटी की स्थापना की गई थी. यहाँ हजारों कारागिरों द्वारा तक्षशिला, पाटलिपुत्र, कलिंग के निर्माण का प्रस्ताव था. फिल्म के लिये पांच अंतर्राष्ट्रीय कलाकार, पच्चीस भारतीय कलाकार और हजारों सहायक कलाकारों की आवश्यकता थी. कलिंग के युध्द के फिल्मांकन के लिए सैकड़ों हाथी, हजारों घोड़े और अन्य प्राणियों का आयोजन किया जाना था.
युद्ध फिल्मांकन के लिए सेना के घुड़सवार, हजारों सैनिक एवम करिब एक लाख तलवार की जरूरत थी. फिल्म का बजट उस वक्त 1979 मे बीस करोड़ होने का अनुमान लगाया गया था, इसके लिए विदेशी स्टुडियो और निर्माताओं से चर्चा चल रही थी. बौद्ध धार्मिक गुरु दलाई लामा के हाथों अशोक सिटी की आधार शिला रखी गई थी. उन्होंने रल्हन जी को शगुन के रुप मे सोने का सिक्का और फिल्मांकन के समय बौद्ध भिक्षुओं का प्रबंध करवाने का आश्वासन दिया था.रल्हन का आवास फिल्म के पात्रों की पेंटिंग, आभुषण, शस्त्र, साज सज्जा के सामान से भरा हुआ था. सभी पात्रों के रूप, वेश आदि का चित्र रुप तैयार किया गया था. फिल्म के बजट की वसुली के लिए उसे विभिन्न भाषाओं में डब कर जपान, श्रीलंका, इत्यादि बौद्ध धर्म का अनुपालन करने वाले देशों में प्रदर्शित किया जाना था.
कुछ विदेशी फाइनांसरों के पिछे हटने के कारण फिल्म का निर्माण नहीं हो पाया.रल्हन सारी उम्र इस सपने को फिल्म या बाद में दुर दर्शन धारावाहिक का रूप देने की कोशिश करते रहे. 1999 मे इस सपने को साथ लिए उनका देहांत हो गया. उनकी अगली पिढी भी इसे पुरा करने का प्रयास पिछले बीस वर्षों से कर रही है. कुछ समय अंतराल में फिल्म का निर्माण प्रारंभ करने की खबरें आती रहती है.
पता नहीं यह सपना कभी सच होगा या नहीं मगर रल्हन जी के जिक्र के साथ इसकी स्मृति सदा जिवित रहेगी.
(चित्र एवम अन्य जानकारी, India Today के 1979 मे प्रकाशित लेख, ralhanproductions.com एवम् अन्य स्तोत्रों से साभार.)