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कहानी अधूरी फिल्मों की (25)-आज इस श्रृंखला मे याद करते है मुजफ्फर अली की फिल्म ‘जूनी’ को


मुजफ्फर अली अपनी फिल्म ‘उमराव जान’ मे उन्नीसवे दशक के लखनऊ को जीवंत रुप देने के लिए जाने जाते है.फिल्म मे वेशभुषा,गीत संगीता,अभिनय,नृत्य का अनोखा मेल हमें देखने मिला था.1980 के दशक के उत्तरार्ध मे उन्होंने फिल्म ‘जूनी’ की परियोजना पर काम प्रारंभ कियाजो सोलहवी सदी की कश्मीर की रानी हब्बा खातुन के जीवन को दर्शाती है.
जूनी एक कश्मीरी युवती की कहानी है जो एक अच्छी कवियित्री थी.कम उम्र मे उसका विवाह किसान अब्दुल लोन से हो गयाथा.विवाहिता उपरांत पती और ससुराल वालों से प्रताडित जूनी कश्मीर की वादियों मे दर्द के गीत रचती और गाती थी.कश्मीर के राजा युसुफ शाह चक ने पंपोर मे केसर के खेतोंसे गुजरते जूनी के आर्त स्वर को सुना और मोहित हो गया.उसने 19 वर्ष की जूनी को अपने पती से तलाक दिलवा कर अपनी रानी बना लिया.
अब वो हब्बा खातून के नाम से प्रसिध्द हो हुई.14 वर्ष तक उन्होंने ने संगीत क्षेत्र मे योगदान दिया.मुगल सम्राट अकबर ने कश्मीर पर कब्जा कर युसुफ शाह को बिहार निर्वासन मे भेज दिया.हब्बा ने राजसी दुनिया को त्यागकर पंत चौक के पास झोंपडी मे शेष जीवन सन्यासीन की तरह व्यतित किया.जहां लगभग पचपन वर्ष की उम्र मे उनका देहांत हो गया.उनके गीत प्राय: शोकाकुल और वियोग के दु:ख से भरे है.ये गीत कश्मीरी संस्कृति का हिस्सा बन गए है और आज भी लोकप्रिय है.
जूनी( हब्बा खातून) की कहानी को परदे पर लाने के कुछ प्रयास पहले भी हुए थे.मशहूर फिल्मकार महबूब खान सन आफ इंडिया के बाद सायरा बानो और कमलजीत ( कुछ खबरों अनुसार दिलीप कुमार) को लेकर फिल्म बनाने वाले थे मगर उनकी अचानक मृत्यु से योजना बंद हो गई. बाद के वर्षों मे बी.आर.चोपडा ने जीनत अमान और संजय खान को लेकर फिल्म बनाने की घोषणा की.फिल्म का संगीत नौशाद दे रहे थे.गायक महोम्मद रफी ने नौशाद के लिए अपना अंतिम गीत इस फिल्म के लिये रिकार्ड़ किया था.
मुजफ्फर अली ने जूनी का प्रस्ताव कश्मीर की राज्य सरकार को प्रस्तुत किया था जीसे तत्कालीन मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने स्विकार कर आर्थिक सहायता भी प्रदान की थी.इस भव्य फिल्म के लिए अमेरिकी डिजाइनर मैरी मैकफैडेन ने कॉस्ट्यूम डिजाइन किए .उस दौर की पोशाखोंकी ,जब कश्मीर पर मुगल प्रभाव नहीं पडा था,की परिकल्पना एक बडी चुनौती थी.फिल्म मे मुख्य कलाकारों के अलावा दो गांव के रहिवासियोंके लिए एक हजार वस्त्र बनाये गये थे.उस युग को जीवंत रुप देने के लिए कला इतिहासकार स्टुअर्ट कैरी वेल्च की सलाह ली गई. फिल्म के दो संस्करण होने थे – अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों के लिए अंग्रेजी और राष्ट्रीय के लिए उर्दू.अंतर्राष्ट्रीय संस्करण का संगीत ऑस्कर विजेता जापानी संगीतकार, रियुची सकामोटो द्वारा किया जाना था, जिसमें कश्मीरी में मोहन लाल आइमा के गाने थे.उर्दू संस्करण में शहरयार के गाने और खय्याम का संगीत था.सभी गीत रिकार्ड़ कर लिए गये थे. न्यूयॉर्क के एक लेखक जेम्स किलॉफ़ ने असग़र वजाहत के उर्दू संवादों के साथ पटकथा लिखी थी.छायांकन की जिम्मेदारी बशीर अली को सौपी गई.
फिल्म मे डिम्पल कपाड़िया मुख्य नायिका और विनोद खन्ना नायक के रुप मे चयनित थे.प्राण,शौकत आजमी,दलिप ताहिल और सुषमा सेठ सहायक भुमिकाओं मे थे.फिल्म को कश्मीर की चारों ऋतुओं की सुंदरता मे चित्रित किया जाना था. दो ऋतुओं का चित्रण भी हो चुका था.मगर कश्मीर की बदलती राजनितिक परिस्थितियों और फारुख अब्दुल्ला के पद से हटने के बाद मे हालात बदतर होते गये और मजबूरन फिल्म निर्माण रोक दिया गया.मुजफ्फर अली फिल्म को पुरा करने का असफल प्रयास करते रहे.
अब कमसे कम फिल्म के गीत तो हम तक पहुंचे यही कामना है.
Kashmirilife.net,searchkashmir.com,upper stall.com,मुजफ्फर अली के युट्युब पर उपलब्ध साक्षात्कार और इंटरनेट पर उपलब्ध अन्य सामग्री से साभार प्रेरित.

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