बात काफी पुरानी है मुंबई में महाराष्ट्र की एक जानी मानी हस्ती श्री राम गणेश की पुण्यतिथि के उपलक्ष में एक समारोह का आयोजनकिया गया था। इस इस प्रोग्राम में उस जमाने की मशहूर अभिनेत्री ललिता पवार जी भी मौजूद थी ।यहां आए कलाकारों के प्रदर्शन चलरहे थे ,प्रोग्राम के आखिर में एक छोटी सी लड़की स्टेज पर गाने के लिए आई ,इससे पहले लोग आते थे परफॉर्म करते थे अवॉर्ड दिएजाते थे ,आखिर में छोटी सी लड़की स्टेज पर गा रही थी उसकी आवाज के जादू ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया ललिता जी भी उसकीमधुर आवाज में खो गई, इस प्रस्तुति के बाद प्रोग्राम समाप्ति की घोषणा कर दी गई। इसके बाद ललिता पवार इस बात से हैरान थी किदूसरे आर्टिस्टो को छोटी मोटी परफॉर्मेंस के लिए भी इनाम वगैरह दिए गए थे ,मगर इस बच्ची ने इतना अच्छा गाया बावजूद इसके उसेकोई अवार्ड या ट्रॉफी या कोई ईनाम नहीं दिया गया। ललिता पवार जी से रहा नहीं गया वह इस बच्ची को कुछ देना चाहती थी इस बातकी घोषणा करना चाहती थी लेकिन उस वक़्त तो उनके पास कुछ था नहीं ,उस समय वह चुपचाप मन मार कर बैठ गई लेकिन उन्होंनेफैसला कर लिया था कि वह इस बच्ची को इनाम जरूर देंगे ।बाद में उन्होंने सोने की कर्णफूल बनवाएं और कोल्हापुर जाकर उस लड़कीको यह दोनों कर्णफूल उपहार में दिए ।प्योर गोल्ड के कर्णफूल ललिता जी ने जिस बच्ची को दिए थे वह थी स्वर कोकिला लतामंगेशकर जी।। ।।
15 अगस्त 1922 को बनारस में पैदा हुए। पुरा नाम रामलाल चौधरी। साहब गरम मिज़ाज के आदमी थे!अपने जमाने में एक कान मेंहिरा और दुसरे कान में पन्ना पहनते थे तो लोग उसे हिरालाल पन्नालाल कहतें थे!
तकदीर का फसाना जा कर किसे सुनाये... इस दिल में जल रही हे अरमान की चिता में... रफी साहब की आवाज में गाया हुआ यह गीतफिल्म सहेरा का था और रामलाल उस फिल्म के संगीतकार थे। कयीं लोगो ने तो उसका नाम भी नहीं सुना होगा!
रामलाल का नाम शहनाई वादन और बांसुरी वादन के लिये उस जमाने में मशहूर था। फिल्म नवरंग मे तू छूपी हे कहाँ मै तडपता यहाँ.. मेंबजती मधूर शहनाई रामलाल ने बजायी हे!
मशहूर संगीतकार राम गांगुली के भाई कमल ने रामलाल की बांसुरी और शहनाई सुनी और उसे बनारस से बंबई ले आये। रामलालचौदह साल तक राम गांगुली के साथ रहे।राम गांगुली को राज कपुर की पहेली फिल्म आग मिली। उस फिल्म में मुकेश का गाया हुआ जिंदा हूं इस तरह के गम ए जिंदगी नहीं और देख चांद की ओर मुसाफिर ..जैसे गीतों के वादक रामलाल के प्रति सबका धयान आकर्षित हुआ।
फिल्म मधुमती मे रामलाल ने सलील चौधरी के लिए चड गयो पापी बिछूआ गीत में मधुर शहनाई बजायी तो फिल्म गूंज उठी शहनाई केलिए वसंत देसाई ने बेक ग़ाउंड में रामलाल से शहनाई बजवाइ ....लेकिन उसकी के़डीट उस्ताद बिस्मिल्ला साहब को मिली!
रामलाल बनारस से बंबई आकर सबसे पहले प़िथवी थीएटर में 80/ रुपये तनख्वाह से शहनाई वादक की नौकरी पर रहे। प़िथवीथीएटर मे एक नाटक शकुन्तला में काम करते वक्त राम लाल से राजकपूर का परिचय हुआ था।
वी। शांताराम ने रामलाल को राज कमल में काम करने के लिए जयादा तनख्वाह की ओफर की तो रामलाल राजकमल में चले गए।वहाँ पर शहनाई और flute बजायी !
राज कमल ने रामलाल को बहार की फिल्मों में काम करने की परमीशन दी थी तो रामलाल को पी। एल। संतोषी की फिल्मटांगावाला मिली। जिसमें राजकपूर और वैजयन्ती माला काम करते थे फिल्म के दो गाने रेकॉर्ड हूवे पर फिल्म बंद हो गई! दुसरी फिल्म पागल खाना मिली तो वो भी बंद हो गई!
रामलाल को सबसे बड़ा ब़ेक मिला वी। शांताराम की फिल्म सहेरा से! वी। शांताराम फिल्म सहेरा के संगीत के लिए शंकर जयकिशनको अनुबंधित करना चाहते थे। पर रामलाल ने फिल्म सहेरा का संगीत तैयार करने के लिए शांताराम से बिनंती की और फिल्म सहेराराम लाल को मिली!
फिल्म सहेरा का गीत तकदीर का फसाना.. रामलाल खुद गाना चाहते थे पर वी। शांताराम ने महंमद रफी से गवाया! फिल्म सहेरा कायुगल गीत तुम तो प्यार हो सजना ...में शिवकुमार शरमा ने संतुर बजाया हे। गीत पंख होते तो उड आती में मिसकीलखान से रबाबबजाया हे।
सन 1964 मे सहेरा के साथ राज कपुर की फिल्म संगम और दिलीप कुमार की फिल्म लीडर भी चल रही थी पर फिल्म सहेरा सिर्फसंगीत के कारण जबरदस्त हीट हुइ!
उसके बाद फिल्म गीत गाया पथथरों ने आइ। फिल्म में नये नये जीतेन्द्र ओर वी। शांताराम की बेटी राजश्री काम कर रहे थे। इस फिल्मके गीत भी लोकप्रिय हुए। तेरे खयालों में हम.. गीत में आशा भोंसले ने कमाल कर दिया!
जिंदगी के आखिरी दिन रामलाल ने बेहद बेहाली मे गुजारे! खेत वाड की चाल में एक खोली में रहते थे.. महाराष्ट्र सरकार रूपये 700/ पेंशन देती थी उस से गुजारा होता था।
रामलाल का 4 जुलाई 2004 को देहांत हो गया। उनकी शमसान यात्रा में फिल्म उद्योग में से कोई हाज़िर न थे...!!!!