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13 फ्लॉप फिल्मों के बाद हिट हुई थी संजय दत्त की ये फिल्म, 20 साल और खिंच गया सिनेमा करियर

फिल्म ‘वास्तव’ ने ही मुझे असल में ये सिखाया कि एक्टिंग करना किसे कहते हैं और एक एक्टर होना क्या होता है?’ फिल्म ‘वास्तव’ संजय दत्त के दिल के बहुत करीब रही फिल्म है। इसी फिल्म ने उन्हें उनके करियर का पहला बेस्ट एक्टर फिल्मफेयर पुरस्कार दिलाया और यही वह फिल्म है जिसके क्लाइमेक्स ने उन्हें अपने माता पिता नरगिस और सुनील दत्त की फिल्म ‘मदर इंडिया’ की याद करके खूबरुलाया।   महेश मांजरेकर की पहली हिंदी फिल्म ये उन दिनों की बात है जब मराठी फिल्म इंडस्ट्री में महेश मांजरेकर का नाम होना शुरू ही हुआ था। साल 1995 में जब पूरा देशशाहरुख खान की फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ के पीछे पागल था तो मराठी भाषा की एक फिल्म ‘आई’ मुंबई, पुणे, कोल्हापुरऔर नागपुर में खूब वाहवाही पा रही थी। महेश को इस फिल्म की शोहरत का फायदा मिला अपनी पहली हिंदी फिल्म ‘निदान’ पाने में।लेकिन, तभी उनकी मुलाकात संजय दत्त से हो गई। संजय दत्त को किसी ने ‘आई’ के बारे में बता रखा था, एक दिन संजय दत्त किसीफिल्म की शूटिंग कर रहे थे तो उन्हें याद आया महेश मांजरेकर ने उन्हें किसी कहानी के बारे में बताया था। महेश को फोन आया कि सेटपर आकर मिलो और अपनी स्क्रिप्ट का नरेशन दे दो। नरेशन भला क्या देते महेश, स्क्रिप्ट ही उनकी तैयार नहीं थी। वह टेंशन में आ गए।एक होटल में बैठे बैठे दो चार पैग मारे और बताते हैं वहीं वेटर का पेन मांगकर कागज पर लिखने लगे। एक बार लिखने लगे तोसिलसिला कुछ यूं बना कि आधे घंटे के अंदर महेश ने अपनी फिल्म के 20 सीन का खाका खींच डाला। यही कागज लेकर महेशमांजरेकर पहुंच गए संजय दत्त से मिलने। आधे घंटे में लिखी गई स्क्रिप्ट को संजय दत्त ने बस 15 मिनट सुना और फैसला कर लिया किउन्हें ये फिल्म करनी है। यही फिल्म थी, ‘वास्तव- द रियलिटी’। 7 अक्टूबर 1999 को रिलीज हुइ फिल्म ‘वास्तव- द रियलिटी’ नेसंजय दत्त का करियर 20 साल और खींच दिया। ये फिल्म शुरू हुई थी ‘निदान’ के बाद लेकिन रिलीज हुई उससे पहले। लगातार फ्लॉप फिल्मों से मिली मुक्ति साल 1993 में रिलीज हुई सुभाष घई की फिल्म ‘खलनायक’ के बाद छह साल तक संजय दत्त की कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस परकमाल नहीं दिखा पाई। बीच में उन्हें लंबा समय जेल में भी बिताना पड़ा। साल 1999 एक तरह से संजय दत्त के लिए काफी लकी रहा।पहले डेविड धवन ने उन्हें गोविंदा के साथ ‘हसीना मान जाएगी’ में मौका दिया, ये फिल्म हिट रही। इसके बाद सोलो हीरो के तौर परफिल्म ‘वास्तव’ ने उनको वापस ए लिस्टर अभिनेता की लीग में बैठा दिया। तब से 21 साल हो गए इस फिल्म को रिलीज हुए। संजयदत्त और महेश मांजरेकर ने इसके बाद साथ में कुछ और फिल्में भी कीं लेकिन ‘वास्तव’ जैसा करिश्मा फिर दोहराया न जा सका। उसवक्त संजय दत्त के चेहरे पर एक अलग ही गुस्सा और एक अलग ही दर्द दिखता था। मराठी सिनेमा के कलाकारों का कमाल खैर, महेश मांजरेकर की फिल्म संजय दत्त के कमाल के अभिनय की वजह से तो जानी ही जाती है, महेश ने इसमें एक प्रयोग औरकिया। इस फिल्म में उनकी मराठी मंडली के तमाम कलाकारों ने अद्भुत अभिनय किया है। संजय नार्वेकर अब बड़े अभिनेता हो चुके हैं।लेकिन, इस फिल्म में वह पहली बार डेढ़ फुटिया के रोल में नजर आए और संजय दत्त के साथ बनी उनकी केमिस्ट्री ने फिल्म को बहुतफायदा पहुंचाया। इसके अलावा नम्रता शिरोडकर, परेश रावल और मोहनीश बहल ने भी बढ़िया काम किया है इस फिल्म में। लेकिन, जो कलाकार इस फिल्म में संजय दत्त पर भी भारी पड़ा, वह रहीं रीमा लागू। मां के किरदार में जो तड़प, जो वेदना और जो लाचारी रीमालागू ने परदे पर दिखाई, वैसे मां के किरदार हिंदी सिनेमा में गिनती के देखने को मिले हैं। मुंबइया अंडरवर्ल्ड पर यूं तो तमाम फिल्में बनीहैं, लेकिन किसी अपराधी के अपनी मां से रिश्ते का जैसा भाव महेश मांजरेकर ने फिल्म ‘वास्तव- द रियलिटी’ में परदे पर दिखाया, वहबेजोड़ है। फिल्म में संजय दत्त और रीमा लागू के सारे सीन गजब के हैं लेकिन क्लाइमेक्स के अलावा जो एक सीन लोगों को अब भीयाद है, वह था पचास तोले वाला सीन। बेटा मां को अपनी तरक्की सोने की कमाई से गिनवा रहा है और मां सोच रही है कि बेटे ने पैसातो खूब कमाया पर बेटा कहलाने का हक खो दिया। इसी इमोशनल ड्रामा को कैश कराने के लिए महेश मांजरेकर ने बाद में फिल्म‘वास्तव- द रियलिटी’ की सीक्वेल भी बनाई फिल्म ‘हथियार’ के नाम से लेकिन मामला दोबारा जमा नहीं।  फिल्म ‘वास्तव- दरियलिटी’ में संजय दत्त, रीमा लागू और दूसरे तमाम मराठी अभिनेताओं ने तो रंग जमाने लायक काम किया ही। फिल्म के म्यूजिक ने भीइसका खूब साथ दिया। महेश मांजरेकर की मित्र मंडली ने यहां भी खूब धमा चौकड़ी मचाई। राहुल रानाडे, रवींद्र साठे और अतुल कालेने विनोद राठौड़ के साथ गायिकी का मैदान संभाला। फिल्म के लिए रिकॉर्ड की गई आरती आज भी महाराष्ट्र के कोने कोने में उसी लयमें गाई जाती है। फिल्म ‘वास्तव- द रियलिटी’ की शोहरत दक्षिण भारत तक पहुंची और इस फिल्म का साल 2006 में तमिल रीमेक भी बना, फिल्म‘डॉन चेरा’ के नाम से।

अमित खन्ना:फ़िल्म निर्देशक गीतकार लेखक पत्रकार

     फ़िल्म निर्देशक गीतकार लेखक पत्रकार अमित खन्ना को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का बॉलीवुड नाम रखने का श्रेय दिया जाता है  उन्होंने 400...

गुलशन राय :बॉलीवुड में एक ऐसे फिल्मकार थे  है जो अपनी मल्टीस्टारर फिल्मों के जरिये दर्शकों के बीच जाते थे 

बॉलीवुड में गुलशन राय एक ऐसे फिल्मकार थे  है जो अपनी  मल्टीस्टारर फिल्मों के जरिये दर्शकों के बीच जाते थे और नई कहानियों गीत संगीत से भरपूर मनोरंजन करते थे।  इन फिल्मे के जरिए अभिनेता अभिनेत्रीयो को  एक नया मुकाम हासिल हुआ  कुछ फिल्मे मीलका पत्थर साबित हुई   गुलशन राय का जन्म 02 मार्च 1924 को हुआ था। उन्होंने अपने करियर की शुरूआत बतौर डिस्ट्रीब्यूटर की। गुलशन राय नेबॉलीवुड में अपने करियर की शुरूआत अपने बैनर  त्रिमूर्ति फिल्मस के तले वर्ष 1970 में प्रदर्शित फिल्म जॉनी_मेरा_नाम से बतौरनिर्माता के रूप में की।जॉनी मेरा नाम में देवानंद, हेमा मालिनी, प्राण, प्रेम नाथ, आई. एस. जौहर ने मुख्य भूमिका निभायी थी। मारधाड़और थ्रिलर से भरपूर यह फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुयी। वर्ष 1973 में गुलशन राय ने एक बार फिर से देवानंद और हेमा मालिनी की जोड़ी को लेकर जोशीला का निर्माण किया। यश चोपड़ा केनिर्देशन में बनी यह फिल्म टिकट खिड़की पर कोई खास कमाल नहीं दिखा सकी।      Bइसके बाद वर्ष 1975 में प्रदर्शित फिल्म दीवार गुलशन राय के करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में शुमार की जाती है। यश चोपड़ा केनिर्देशन में बनी फिल्म दीवार के जरिये गुलशन राय ने दो भाइयों के बीच द्वंद को बखूबी पेश किया। इस फिल्म में अमिताभ बच्चन औरशशि कपूर का टकराव देखने लायक था। फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुयी साथ हीं निरूपा रॉय को भी मां के किरदार केलिये काफी लोकप्रियता मिली।      वर्ष 1977 में गुलशन राय ने धर्मेन्द्र और हेमा मालिनी को लेकर ड्रीमगर्ल का निर्माण किया। ड्रीमगर्ल भी टिकट खिड़की परसुपरहिटसाबित हुयी। - इसके बाद उन्होंने वर्ष 1978 में प्रदर्शित फिल्म त्रिशूल के जरियेकई मल्टीसितारों को एक साथ पेश किया। इस फिल्म में संजीवकुमार, वहीदा रहमान, अमिताभ बच्चन, शशि कपूर, हेमा मालिनी, रॉखी, पूनम ढिल्लो, सचिन, प्रेम चोपड़ा ने अहम भूमिका निभायी थी।      यश चोपड़ा के निर्देशन में बनी त्रिशूल में गुलशन राय ने बाप और बेटे के बीच द्वंद को रूपहले पर्दे पर पेश किया। यह फिल्म टिकटखिड़की पर सुपरहिट साबित हुयीवर्ष 1982 में प्रदर्शित फिल्म विधाता गुलशन राय के करियर कीकामयाब फिल्मों में शुमार की जातीहै। सुभाष घई के निर्देशन में बनी इस फिल्म में एक बार फिर से सुपर सितारों की फौज खड़ी कर दी। विधाता में दिलीप कुमार, संजीवकुमार, शम्मी कपूर, संजय दत्त, पद्मिनीकोल्हापुरी, सुरेश ओबेराय और अमरीश पुरी ने अहम भूमिका निभायीथी।    वर्ष 1985 में गुलशन राय ने युद्ध का निर्माण किया। इस फिल्म के निर्देशन का जिम्मा उन्होंने अपने बेटे राजीव राय को सौंपा। युद्धको टिकट खिड़की पर औसत सफलता मिली।वर्ष 1989 में गुलशन राय ने एक और मल्टीस्टार फिल्म त्रिदेव का निर्माण किया। राजीवराय के निर्देशन में बनी इस फिल्म में सन्नी देओल-नसीरुद्दीन शाह, जैकी श्रॉफ माधुरी दीक्षित, संगीता बिजलानी, अमरीश पुरी ने अहमभूमिका निभायी थी। यह फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुयी। इसके बाद गुलशन राय ने मोहरा और गुप्त जैसी सफल फिल्मों का निर्माण किया।अपनी निर्मित फिल्मों के जरिये दर्शकों के बीच खासपहचान बनाने वाले गुलशन राय 11 अक्टूबर 2004 को इस दुनिया को अलविदा कह गये। मल्टीस्टार फिल्मे बनाने के लिए प्रसिद्ध निर्माता गुलशन राय को उनके जयंती पर सादर नमन 🙏🙏🙏

रोहिणी हट्टंगड़ी : एक सशक्त भारतीय फिल्म, मराठी थिएटर और टेलीविजन अभिनेत्री 

रोहिणी हट्टंगडी एक भारतीय फिल्म, मराठी थिएटर और टेलीविजन अभिनेत्री हैं। उसका जन्म  11 अप्रैल 1955 को महाराष्ट्र में हुआ है । हट्टंगडी का जन्म नई दिल्ली में हुआ था; उन्होंने 1966 में रेणुका स्वरूप मेमोरियल गर्ल्स हाई स्कूल, पुणे से स्कूली शिक्षा प्राप्त की।उन्होंने 1971 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD), नई दिल्ली में दाखिला लिया; यहीं पर उसकी मुलाकात जयदेव हट्टंगडी से हुई, जोउसी बैच में थे। साथ में, उन्होंने थिएटर गुरु इब्राहिम अल्काज़ी के तहत प्रशिक्षण प्राप्त किया। 1974 में स्नातक होने पर, रोहिणी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ ऑल-राउंड छात्र का पुरस्कार भी मिला, जबकिनिर्देशन में प्रशिक्षण ले रहे जयदेव ने सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार जीता। जयदेव और रोहिणी ने अगले वर्ष शादी कर ली। प्रोफेसर सुरेंद्र वाडगांवकर के मार्गदर्शन में रोहिणी ने आठ साल से अधिक समय तक भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूपों, कथकली औरभरतनाट्यम में प्रशिक्षण प्राप्त किया। रोहिणी और जयदेव का एक बेटा असीम हट्टंगडी है, जो एक थिएटर अभिनेता भी है और उसने बादल सरकार के नाटक 'एवम इंद्रजीत' में अभिनय किया था, जिसका निर्देशन खुद जयदेव हट्टंगडी ने किया था। जयदेव हट्टंगडी का 4 दिसंबर 2008 को निधन हो गया था।वह पिछले एक साल से कैंसर से पीड़ित थे और उनकी उम्र केवल 60 वर्ष थी। रोहिणी ने अपने करियर की शुरुआत मराठी मंच से की थी। एक बार एनएसडी से बंबई में, जयदेव और रोहिणी ने बॉम्बे में एक मराठीथिएटर ग्रुप शुरू किया, जिसे 'आविष्कार' कहा गया, जिसने 150 से अधिक नाटकों का निर्माण किया। 1975 में, उन्होंने महाराष्ट्र स्टेट ड्रामा फेस्टिवल में 'सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार' जीता, 'चांगुना' में उनके प्रदर्शन के लिए फेडरिकोगार्सिया लोर्का के स्पेनिश क्लासिक 'यर्मा' का मराठी रूपांतरण, मुंबई में 'अविशकर' द्वारा निर्मित। तब से उसकी कोई तलाश नहीं है। उन्हें 'यक्षगान' में अभिनय करने वाली पहली महिला होने का गौरव प्राप्त है, कर्नाटक का एक लोक नाटक 'भीष्म विजय' है, जिसकानिर्देशन डॉ. के. शिवराम कारंत द्वारा किया गया है, इसके अलावा वह एक जापानी काबुकी नाटक में अभिनय करने वाली एशिया कीपहली महिला हैं। , इबारागी, एक प्रसिद्ध जापानी निर्देशक, शोज़ो सातो द्वारा निर्देशित। लेकिन उनके लंबे और शानदार करियर में जो नाटक सबसे अलग है वह है 'अपराजिता', जो नितिन सेन की एक बंगाली कहानी परआधारित है; यह 120 मिनट लंबा, एकल-अभिनय नाटक, सभी चरित्रों के केंद्र को बनाए रखते हुए, उनमें से 18 से अधिक, मंच परनिभाए गए सभी पात्रों के केंद्र को बनाए रखते हुए, उसकी सीमा और एक भावनात्मक उच्च से दूसरे में स्थानांतरित करने की क्षमता कोप्रदर्शित करता है। पहली बार 1999 में मंचन किया गया, यह नाटक वर्षों से हिंदी और मराठी दोनों में प्रदर्शित किया गया है। संयोग से, यह उनका पहलाप्रदर्शन था, जिसे लंबे समय में उनके पति, प्रख्यात थिएटर निर्देशक जयदेव हट्टंगडी ने निर्देशित किया था; सभी में उसने उनके द्वारानिर्देशित पांच नाटकों में अभिनय किया है, जिसमें मेडिया, यूरिपिड्स द्वारा लिखित एक ग्रीक त्रासदी भी शामिल है।     इन वर्षों में उन्होंने मंच पर कई यादगार किरदार निभाए हैं, जैसे 'महायज्ञ' की विमला पांडे से लेकर 'ये कहां आ गए हम' में एकहिंदुस्तानी शास्त्रीय गायिका, 'इंतेहान' में एक प्रतिबद्ध सामाजिक कार्यकर्ता से लेकर भारत में अनपढ़ और परेशान सक्कूबाई तक।'हिंदुस्तानी' ; हट्टंगड़ी में खुद को पार करने और मंच पर निभाए जाने वाले पात्रों में खुद को ढालने की क्षमता है, हमेशा इतनी वाक्पटुतासे। उन्होंने भारतीय रंगमंच में उनके योगदान के लिए 2004 संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार जीता। विनय आप्टे द्वारा निर्देशित विजय तेंदुलकर की 'मित्र ची गोश्त', प्रेमचंद की 'गोदान' पर आधारित 'होरी', इप्टा द्वारा निर्मित, और हालही में सुधा चंद्रन और बाबुल भावसार के साथ हिंदी नाटक 'कोहरा' में उनके काम की व्यापक रूप से सराहना की गई थी। . जयदेव और रोहिणी हट्टंगडी मुंबई में कला और प्रतिभा प्रोत्साहन में अनुसंधान और शिक्षा के केंद्र 'कलाश्रय' के कामकाज में भी शामिलथे, जो वंचितों के साथ काम कर रहा था और शक्तिशाली संचार के लिए उपकरण विकसित कर रहा था। टेलीविज़न उन्होंने Etv मराठी पर मराठी धारावाहिक चार दिवस ससुचियों और ज़ी मराठी पर मराठी धारावाहिक वाहिनीसाहेब में भी मुख्य भूमिकानिभाई है। हट्टंगड़ी ने भारत में राजनीति पर एक ज़बरदस्त टेलीविजन श्रृंखला में भी मुख्य भूमिका निभाई है, जहाँ उन्होंने एक प्रमुखराजनीतिक दल की नेता की भूमिका निभाई है। उन्होंने घर की लक्ष्मी बेटियों में मोती बा के रूप में एक अभिनेत्री की भूमिका निभाई। इन वर्षों में, उन्हें कई टीवी धारावाहिकों में देखा गया है जिनमें महायज्ञ, थोड़ा है थोड़ा की जरूरत है, शिक्षक आदि फिल्में शामिल हैं ।      रोहिणी हट्टंगडी ने 1978 में सईद अख्तर मिर्जा की अरविंद देसाई की अजीब दास्तान के साथ अपनी फिल्म की शुरुआत की; फिल्मने सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता। इसके बाद उनकी अगली, अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है (1980) और चक्र(1981) में रवींद्र धर्मराज ने अभिनय किया, जिसमें नसीरुद्दीन शाह और स्मिता पाटिल ने मुख्य भूमिकाएँ निभाईं।    उनका अगला बड़ा ब्रेक एक अंतरराष्ट्रीय फिल्म गांधी (1982) थी, जिसे उन्हें तुरंत अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली, और 1982 मेंसहायक भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए बाफ्टा अवार्ड, जो अब तक पाने वाली एकमात्र एशियाई थीं। इसके बाद महेश भट्ट की अर्थ (1982) जैसी फिल्मों में उनके प्रशंसित प्रदर्शन की कड़ी थी, जिसने उन्हें 1984 में फिल्मफेयरसर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का पुरस्कार जीता, और गोविंद निहलानी की पार्टी (1984) जिसके लिए उन्होंने 1985 का राष्ट्रीय फिल्मपुरस्कार जीता।   उन्होंने दो फिल्मफेयर पुरस्कार जीते हैं, एक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, और ज्यादातर फिल्म गांधी (1982) में कस्तूरबा गांधी के रूप में उनके प्रदर्शन के लिए सहायक भूमिका में सर्वश्रेष्ठअभिनेत्री का बाफ्टा पुरस्कार जीतने वाली एकमात्र भारतीय अभिनेत्री होने के लिए जानी जाती हैं। वह महेश भट्ट की दो कला फिल्मों, अर्थ (1982) और सारांश (1984) में अपनी भूमिकाओं के लिए भी जानी जाती हैं।     इसके बाद दो फिल्में आईं जिनमें एक वृद्ध गृहिणी के रूप में दिखाया गया, मोहन जोशी हाज़िर हो! और अनुपम खेर के साथ सारांश, दोनों 1984 में रिलीज़ हुईं। इस समय तक, वह व्यावसायिक हिंदी सिनेमा द्वारा मातृ भूमिकाओं में भारी टाइप-कास्ट थीं; विडंबना यह हैकि उन्होंने गांधी (1982) में कस्तूरबा गांधी के रूप में अपनी पहली मातृ भूमिका निभाई, जब वह केवल 27 वर्ष की थीं; शायद इसकीआलोचनात्मक प्रशंसा व्यावसायिक हिंदी सिनेमा के क्षेत्र में उसके खिलाफ गई।     फिर भी, उन्होंने एन. चंद्रा की प्रतिघात (1987) में एक शक्तिशाली लेकिन छोटी भूमिका के साथ सिनेमा के व्यावसायिक क्षेत्र मेंसांचे को तोड़ दिया, पंकज पाराशर की चालबाज़ और लड़ाई में उनके उत्कृष्ट हास्य प्रदर्शन का उल्लेख नहीं किया गया, दोनों 1989 मेंरिलीज़ हुईं। पंकज पराशर की बेवर्ली हिल्स कॉप-प्रेरित फिल्म जलवा (1987) में ड्रग सरगना श्रीबाबी की भूमिका।    हालाँकि, भारतीय कला सिनेमा ने उन्हें उनकी क्षमता के अनुरूप कई तरह की फिल्मी भूमिकाएँ देने में कामयाबी हासिल की, और यहींपर उन्होंने उन्हें एक शक्तिशाली अभिनेत्री के रूप में पाया, जो वह हैं। 1985 में, उन्होंने गोविंद निहलानी के साथ अघात (1985), मुजफ्फर अली के साथ अंजुमन (1986) और गिरीश कसरावल्ली के साथ माने और एक घर में काम किया, दोनों 1991 में रिलीज़हुईं।    1989 में, बॉलीवुड व्यावसायिक सिनेमा ने एक बार फिर उन्हें अमिताभ बच्चन स्टारर, अग्निपथ में एक उम्रदराज माँ के रूप में कास्टकिया, जहाँ फिर से उन्होंने पावर-पैक प्रदर्शन देने की क्षमता साबित की और फिर से उन्हें 1991 में फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायकअभिनेत्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।     90 के दशक में उन्हें राजकुमार संतोषी की फ़िल्मों में लगातार देखा गया, दामिनी (1993), घातक (1996) से शुरू होकर और अंतमें उनकी 2000 की हिट पुकार (2000) में एक अच्छी तरह से सराही गई हास्य भूमिका में ।      संजय दत्त हिट मुन्नाभाई एमबीबीएस (2003) में उनके अगले प्रदर्शन को व्यापक रूप से सराहा गया, और उन्होंने तमिल संस्करण, वसूली राजा एमबीबीएस में नायक की मां की भूमिका में भी अभिनय किया। इन वर्षों में, उन्होंने सभी में 70 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया है, और प्रत्येक में उन्होंने अपने पात्रों को उतना ही सशक्त रूप सेचित्रित किया है जितना कि वह अपने थिएटर प्रदर्शनों में करती हैं।

के एन सिंह (कृष्ण निरंजन सिंह) की जीवनी

( कृष्ण निरंजन सिंह) के एन सिंह का जन्म 1 सितंबर, 1908 को देहरादून, संयुक्त प्रांत आगरा और अवध, ब्रिटिश भारत में हुआ था।...

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