बॉर्डर’ (Border) 13 जून 1997 में रिलीज़ हुई थी. फिल्म में सनी देओल (Sunny Deol), जैकी श्रॉफ (Jackie Shroff), सुनीलशेट्टी (Suniel Shetty), अक्षय खन्ना (Akshaye Khanna), पुनीत इस्सर (Puneet Issar), कुलभूषण खरबंदा (Kulbhushan Kharbanda), तब्बू (Tabu), पूजा भट्ट (Pooja Bhatt) और राखी (Rakhee) जैसे कई बड़े सितारे नजर आये थे.
सनी देओल को पहली बार इस फिल्म में सरदार के किरदार में देखा गया था.
2. फिल्म का स्क्रीनप्ले और डायरेक्शन बॉलीवुड के जाने माने डायरेक्टर जे. पी. दत्ता (J. P. Dutta) ने किया था. साथ ही फिल्म कोप्रोड्यूस भी जे. पी. दत्ता ने ही किया था.
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3. ‘बॉर्डर’ फिल्म की कहानी साल 1971 में हुए भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध (Battle of Longewala) पर आधारित थी, जिसमे इंडियन आर्मी ने पाकिस्तान की सेना को धूल चटाई थी.
4. भारत-पाकिस्तान के बीच हुए इस युद्ध में इंडियन आर्मी की तरफ से कुलदीप सिंह चंद्रपुरी (Kuldip Singh Chandrapuri) लीडररहे थे, जिन्हें बाद में भारत सरकार की तरफ से महावीर चक्र (MVC) से सम्मानित भी किया था. फिल्म में सनी देओल ने इन्ही का रोलनिभाया था.
5. बता दें, यह फिल्म जे. पी. दत्ता का ड्रीम प्रोजेक्ट थी. उन्होंने इस फिल्म की स्क्रिप्ट सितंबर 1995 में लिखनी शुरू की थी और यहअप्रैल 1996 में कम्पलीट हो गई थी.
इस फिल्म की अधिकांश शूटिंग बीकानेर में हुई थी, जहां असलियत में भारत और पाक के बीच युद्ध हुआ था.
6. फिल्म की शूटिंग के दौरान रियल इंडियन आर्मी के जवान दिखाए गये थे. साथ ही फिल्म में किरदारों की वर्दी, इक्विपमेंट, जीप, टैंकऔर गन भी इंडियन आर्मी की तरफ से ही प्रोवाइड कराई गई थी.
7. बता दें, जे. पी. दत्ता के भाई दीपक दत्ता (Deepak Dutta) भी आर्मी में थे. साल 1987 में एक विमान दुर्घटना में उनका देहांत होगया था. फिल्म की शूटिंग के दौरान जैकी श्रॉफ ने दीपक दत्ता की ही वर्दी पहनी थी.
इस बारे में जे. पी. दत्ता ने खुद खुलासा किया था और बताया था कि उन्होंने जैकी श्रॉफ से पूछा था कि उन्हें उनके भाई की वर्दी पहनने मेंकोई एतराज तो नहीं है. इस पर जैकी श्रॉफ ने तुरंत हां कर दी थी.
8. इस फिल्म की रिलीज़ के समय साउथ दिल्ली के उपहार सिनेमा में एक ट्रेजेडी हो गई थी. दरअसल पहले ही दिन पहले शो के दौरानशोर्ट सर्किट की वजह से सिनेमा में आग लग गई थी, जिसकी वजह से 59 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल होगए थे.
9. इस फिल्म का म्यूजिक अनु मलिक (Anu Malik) ने कंपोज़ किया था. फिल्म में कुल 5 गाने थे और सभी गाने सुपरहिट हुए थे. खासकर फिल्म का फिल्म का गाना ‘संदेसे आते हैं’ (Sandese Aate Hain) उस साल ब्लॉकबस्टर हुआ था. बल्कि यह गाना आजभी दर्शकों को खूब पसंद आता है.
ता दें, इस गाने की वजह से सोनू निगम (Sonu Nigam) रातों रात बड़े सिंगर बन गए थे और इस फिल्म के बाद उन्हें लगातार कई बड़ीफिल्मों के ऑफर भी आने लग गए थे.
10. यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर ऑलटाइम ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी. इतना ही नहीं यह साल 1997 में रिलीज़ हुई सबसे ज्यादाकमाई करने वाली दूसरी बॉलीवुड फिल्म भी बनी.
11. आइये ‘बॉर्डर’ फिल्म के बजट और बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के बारे में बात कर लेते हैं.
Border Movie...
फ़िल्म 'शागिर्द' में जॉय मुखर्जी के साथ उनकी अधेड़ उम्र के आशिक़ की भूमिका आप लोगो को शायद याद होगी
फ़िल्म के प्रसिद्ध गीत 'बड़े मियां दीवाने, ऐसे न बनो / हसीना क्या चाहे हमसे सुनो' के बजते ही जोहर का चेहरा नज़र आने लगता है. जौहर साहब सबसे पहले एक मशहूर फ़िल्म कलाकार, जो कभी फ़िल्म का हीरो तो कभी हास्य अभिनेता की तरह पर्दे पर नज़र आता. लेकिन पर्दे से परे वे लेखक, निर्माता-निर्देशक भी थे. हिंदी सिनेमा के हरफ़न मौला.कलाकारों में से एक थे आई एस जोहर. जिनका पूरानाम इन्द्र सेन जोहर.था इनका जन्म पंजाब के चकवाल जिले की तलागंग तहसील (अब पाकिस्तान में) 16 फरवरी 1920 को हुआ था
असल में उनके फ़िल्मी सफर की शुरूआत ही प्रसिद्ध निर्माता- निर्देशक रूप के शोरी की फ़िल्म 'एक थी लड़की' के लेखक के तौर परही हुई. इसी फ़िल्म में हास्य अभिनेता मजनू के साथ जोड़ी बनाकर एक भूमिका भी निभाई. अगले 35 बरस तक जोहर पर्दे पर लगातारछाए रहे.आईएस जोहर को जॉनी मेरा नाम फ़िल्म में तिहरी भूमिका के लिए फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड मिला था.
दिलीप कुमार, देवानंद, शम्मी कपूर, राजेश खन्ना, जॉय मुखर्जी जैसे कई सितारों के साथ हास्य भूमिकाओं के अलावा किशोर कुमार केसाथ 'बेवकूफ' (1960), 'अकलमंद' (1966) और 'श्रीमान जी' (1968) और महमूद के साथ 'जोहर महमूद इन गोआ' (1965), 'जोहर - महमूद इन हांगकांग ' (1971) में जोड़ी बनाकर मुख्य भूमिकाओं में भी काम किया.
अपनी फ़िल्म 'जोहर महमूद इन गोआ' की कामयाबी से इतने उत्साहित हो गए कि उन्होंने अपने ही नाम से दो और फ़िल्में 'जोहर इनकाश्मीर' (1966) और 'जोहर इन बाम्बे' भी बना डाली. दोनो ही फ़िल्में फ्लॉप हुईं.
अलबत्ता विजय आनंद के निदेशन में बनी सुपर हिट फ़िल्म 'जॉनी मेरा नाम' (1970) में अपनी तिहरी हास्य भूमिका के लिए उन्हेंफ़िल्मफेयर अवार्ड ज़रूर मिला. इस फ़िल्म में उनके तीनों रूप ‘पहलाराम', ‘दूजाराम' और 'तीजाराम' आज भी दर्शकों के दिलों में आजभी ज़िंदा हैं.
मगर फ़िल्मों में अभिनय करने भर से कोई हरफ़न मौला कहलाने का हक़दार नहीं हो जाता.
उसके लिए बहुत कुछ ऐसा करना होता है जो अमूमन नहीं होता.. अब जैसे आईएस जोहर ने दो बार एमए किया. पहली बार अर्थशास्त्रमें, दूसरी मर्तबा राजनीति शास्त्र में.
फिर भी दिल नहीं माना तो वकालत की डिग्री हासिल करने के लिए एलएलबी भी कर डाला.
पेशा चुनने का मौका आया तो पेशा इख्तियार किया फ़िल्म लेखक और अभिनेता का पहला कदम सही पड़ा तो फिर डायरेक्टर भी बनगए.
उन्होंने उम्र भर अनगिनत इश्क़ किए और शायद आधा दर्जन शादियां भी कीं. पहली पत्नी रमा बंस से भले ही आख़िर तक प्रेम का नाताबना रहा लेकिन अलगाव काफ़ी पहले हो गया था.
फिर उनकी ज़िंदगी में प्रोतिमा बेदी भी आईं. प्रसिद्ध कैमरामैन जल मिस्त्री की पत्नी को भी वे एक क्रिकेट मैच देखते-देखते ले उड़े.
याद पड़ता है कि एक बार बातचीत में उन्होंने बताया था कि जब वे लाहौर के एफसी कालेज में छात्र थे तो कोई लड़की उन्हें घास नहींडालती थी.
वजह यह कि उस वक़्त वे काफ़ी दुबले-पतले थे और हड्डियों का ढांचा भर नज़र आते थे.
अपनी इसी कमज़ोरी को ढकने के लिए और लड़कियों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए उन्होंने लिखना शुरू कर दिया. पहले कुछलेख और फिर नाटक लिखना शुरू किया.
ज़ाहिर है कि वे अपने मक़सद में कामयाब हुए. 'कामयाब न होता तो लिखता ही क्यों रहता?' उन्होंने कहा था.
उनकी शुरुआती फ़िल्में उनके इस बयान की ताईद करती हुई लगती हैं. साठ के दशक में कामयाबी की चर्बी जिस्म पर चढ़ी तो हुलियाकुछ बेहतर हुआ.
वर्ष 1977 में इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी के विरुद्ध फ़िल्म वालों ने जनता पार्टी को मदद की. जब जनता सरकार ने भी निराश किया तोजोहर के निशाने पर समाजवादी नेता राज नारायण आ गए, जो उस समय सरकार में मंत्री भी थे.
जोहर जब-तब उनको अपने बयानों से छेड़ते थे. उन्होने घोषणा कर दी कि जहां से भी राज नारायण चुनाव लड़ेंगे वे उनके विरुद्ध खड़ेहोंगे.
नेताजी के नाम से लोकप्रिय राजनारायण जी उनसे काफ़ी परेशान रहे. यह और बात है कि फ़िल्मों में उनकी कॉमेडी पर हंसने वालों नेचुनाव में उनको कभी गंभीरता से नहीं लिया. यह भी सच है कि वे ख़ुद भी अपने चुनाव को गंभीरता से नहीं लेते थे.
अंग्रेज़ी फ़िल्म पत्रिका 'फ़िल्मफेयर' में उनका सवाल-जवाब का कॉलम ‘क्वेश्चन बाक्स' बेहद पापुलर था. 1978 में जब मेनका गांधी ने'सूर्या' नाम से एक पत्रिका शुरू की तो उसमें आईएस जोहर का एक कॉलम भी छपता था 'री-राईटिंग आफ़ द हिस्ट्री' जिसमें वेतात्कालिक राजनतिक-सामाजिक घटनाओं पर व्यंग लिखते थे.
उन्होने ख़ुद को भले ही कभी गंभीरता से न लिया हो लेकिन हॉलीवुड ने उनको बड़ी गंभीरता से लिया. इसी कारण उनको 'हैरी ब्लैक' (1958), 'नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर' (1959), 'लारेंस आफ़ अरेबिया' (1962) और 'डेथ आन द नाईल' (1978) जैसी फ़िल्मों में कास्टकिया.
जिस वक़्त पाकिस्तान में जनरल जिया-उल-हक़ ने ज़ुल्फिकार अली भुट्टो का तख़्तापलट कर फांसी देने का षड़यंत्र रचा तब इस विषयपर आईएस जोहर ने एक नाटक लिखा था 'भुट्टो' जो बहुत चर्चित भी हुआ और प्रशंसा भी पाई. इस नाटक के अलावा जोहर ने लगभगएक दर्जन और भी नाटक लिखे लेकिन वे इतने चर्चित नहीं हुए.
10 मार्च 1984 को सात महीने की लंबी बीमारी के बाद उनका देहांत हो गया. मरने से पहले तक उनके सेंस आफ ह्यूमर में कोई कमीनहीं आई.
मृत्यु के दो-तीन दिन पहले उन्होंने अपने बेटे अनिल और बेटी अंबिका को बुलाकर कहा था- 'मेरे मरने की ख़बर छपे तो मुझे अख़बारभेजना मत भूलना '.मगर जाने से पहले अपने कारनामों की बदौलत एक यादगार इंसान बन गए. बॉलीवुड के ऐसे विरले कलाकारआईएस जौहर साहब को सादर अभिवादन 🙏🙏🙏
आज से 75 वर्ष पूर्व सन 1948 में एक हिन्दी फ़िल्म आई थी। नाम था 'मन्दिर'। इस फ़िल्म से जुड़ी एक बात जो शायद आज के सिने प्रेमियों को भी रोचक लगे वह यह है कि इस फ़िल्म में बतौर अभिनेत्री एक भूमिका में नज़र आईं लता मंगेशकर, जिन्होंने बाद में एकगायिका के रूप में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की थी। फ़िल्म 'मन्दिर' में लता मंगेशकर ने अभिनय के अलावा गायन भी किया था।
इस फ़िल्म से जुड़ा एक और रोचक तथ्य है। यह अभिनेत्री के रूप में अपने समय की प्रख्यात अभिनेत्री नन्दा की पहली फ़िल्म थी। उसवक्त नन्दा की उम्र लगभग नौ वर्ष थी। इस फ़िल्म में वे एक बाल कलाकार के रूप में नज़र आईं।
फ़िल्म के दो निर्देशक थे। एक थे अभिनेत्री नन्दा के पिता मास्टर विनायक और दूसरे दिनकर पाटिल। मास्टर विनायक (पूरा नाम: विनायक दामोदर कर्नाटकी)
अपने ज़माने के जाने-माने फ़िल्म निर्देशक और अभिनेता थे। 19 अगस्त 1947 को 41 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था।
फिल्म 'मंदिर' में मास्टर विनायक ने निर्देशन की ज़िम्मेदारी संभालने के अतिरिक्त अभिनय भी किया था। फ़िल्म में उन्होंने एक दाढ़ीवाले वृद्ध व्यक्ति की भूमिका निभाई थी। यह फ़िल्म उनकी मृत्यु के बाद प्रदर्शित हुई।
'मन्दिर' फ़िल्म में संगीत दिया था वसन्त देसाई ने। गीत लिखे थे नरेन्द्र शर्मा ने।
इस फ़िल्म में प्रमुख भूमिकाओं में थे-शांता आप्टे, शाहू मोडक, जयमाला, लता मंगेशकर, मास्टर विनायक, जानकीदास और बेबीनन्दा।
DPPant/FB022023