15 अगस्त 1922 को बनारस में पैदा हुए। पुरा नाम रामलाल चौधरी। साहब गरम मिज़ाज के आदमी थे!अपने जमाने में एक कान मेंहिरा और दुसरे कान में पन्ना पहनते थे तो लोग उसे हिरालाल पन्नालाल कहतें थे!
तकदीर का फसाना जा कर किसे सुनाये... इस दिल में जल रही हे अरमान की चिता में... रफी साहब की आवाज में गाया हुआ यह गीतफिल्म सहेरा का था और रामलाल उस फिल्म के संगीतकार थे। कयीं लोगो ने तो उसका नाम भी नहीं सुना होगा!
रामलाल का नाम शहनाई वादन और बांसुरी वादन के लिये उस जमाने में मशहूर था। फिल्म नवरंग मे तू छूपी हे कहाँ मै तडपता यहाँ.. मेंबजती मधूर शहनाई रामलाल ने बजायी हे!
मशहूर संगीतकार राम गांगुली के भाई कमल ने रामलाल की बांसुरी और शहनाई सुनी और उसे बनारस से बंबई ले आये। रामलालचौदह साल तक राम गांगुली के साथ रहे।राम गांगुली को राज कपुर की पहेली फिल्म आग मिली। उस फिल्म में मुकेश का गाया हुआ जिंदा हूं इस तरह के गम ए जिंदगी नहीं और देख चांद की ओर मुसाफिर ..जैसे गीतों के वादक रामलाल के प्रति सबका धयान आकर्षित हुआ।
फिल्म मधुमती मे रामलाल ने सलील चौधरी के लिए चड गयो पापी बिछूआ गीत में मधुर शहनाई बजायी तो फिल्म गूंज उठी शहनाई केलिए वसंत देसाई ने बेक ग़ाउंड में रामलाल से शहनाई बजवाइ ....लेकिन उसकी के़डीट उस्ताद बिस्मिल्ला साहब को मिली!
रामलाल बनारस से बंबई आकर सबसे पहले प़िथवी थीएटर में 80/ रुपये तनख्वाह से शहनाई वादक की नौकरी पर रहे। प़िथवीथीएटर मे एक नाटक शकुन्तला में काम करते वक्त राम लाल से राजकपूर का परिचय हुआ था।
वी। शांताराम ने रामलाल को राज कमल में काम करने के लिए जयादा तनख्वाह की ओफर की तो रामलाल राजकमल में चले गए।वहाँ पर शहनाई और flute बजायी !
राज कमल ने रामलाल को बहार की फिल्मों में काम करने की परमीशन दी थी तो रामलाल को पी। एल। संतोषी की फिल्मटांगावाला मिली। जिसमें राजकपूर और वैजयन्ती माला काम करते थे फिल्म के दो गाने रेकॉर्ड हूवे पर फिल्म बंद हो गई! दुसरी फिल्म पागल खाना मिली तो वो भी बंद हो गई!
रामलाल को सबसे बड़ा ब़ेक मिला वी। शांताराम की फिल्म सहेरा से! वी। शांताराम फिल्म सहेरा के संगीत के लिए शंकर जयकिशनको अनुबंधित करना चाहते थे। पर रामलाल ने फिल्म सहेरा का संगीत तैयार करने के लिए शांताराम से बिनंती की और फिल्म सहेराराम लाल को मिली!
फिल्म सहेरा का गीत तकदीर का फसाना.. रामलाल खुद गाना चाहते थे पर वी। शांताराम ने महंमद रफी से गवाया! फिल्म सहेरा कायुगल गीत तुम तो प्यार हो सजना ...में शिवकुमार शरमा ने संतुर बजाया हे। गीत पंख होते तो उड आती में मिसकीलखान से रबाबबजाया हे।
सन 1964 मे सहेरा के साथ राज कपुर की फिल्म संगम और दिलीप कुमार की फिल्म लीडर भी चल रही थी पर फिल्म सहेरा सिर्फसंगीत के कारण जबरदस्त हीट हुइ!
उसके बाद फिल्म गीत गाया पथथरों ने आइ। फिल्म में नये नये जीतेन्द्र ओर वी। शांताराम की बेटी राजश्री काम कर रहे थे। इस फिल्मके गीत भी लोकप्रिय हुए। तेरे खयालों में हम.. गीत में आशा भोंसले ने कमाल कर दिया!
जिंदगी के आखिरी दिन रामलाल ने बेहद बेहाली मे गुजारे! खेत वाड की चाल में एक खोली में रहते थे.. महाराष्ट्र सरकार रूपये 700/ पेंशन देती थी उस से गुजारा होता था।
रामलाल का 4 जुलाई 2004 को देहांत हो गया। उनकी शमसान यात्रा में फिल्म उद्योग में से कोई हाज़िर न थे...!!!!
फिल्मी दुनिया में चाइल्ड एक्टर्स ने भी खास जगह बनाई है. क्या आपको अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना और शशि कपूर के बचपन का किरदार निभाने वाले मास्टर टीटू याद हैं? वह अब काफी बड़े हो गए हैं. उन्हें बतौर बाल कलाकार जितनी प्रसिद्धि मिली, बड़े होने के बाद नहीं मिल सकी.
मनोरंजन जगत में शुरुआती दौर की फिल्मों में अक्सर फिल्म की कहानी हीरो के बचपन के किरदार से शुरू हुआ करती थी. हीरो काबचपन में बिछड़ना और फिर जवानी में मिलना. छोटी उम्र में गरीबी और लाचारी वाले दिन देखना और फिर बड़े होने के बाद गुंडों की पिटाई करना…राजेश खन्ना (Rajesh Khanna) की ‘रोटी’, अमिताभ बच्चन की ‘परवरिश’, ‘सुहाग’, ‘यराना’ जैसी फिल्में इस तरह की फिल्मों के उदाहरण हैं. ऐसे में इन फिल्मों में हीरो के बचपन का किरदार निभाने वाले बाल कलाकार भी उस दौर में खास होते थे. आइए, आपको ‘रोटी’ में राजेश खन्ना के बचपन के किरदार निभाने वाले चाइल्ड आर्टिस्ट के बारे में बताते हैं.
इन फिल्मों में मासूम और लाचार दिखने वाले चाइल्ड आर्टिस्ट का नाम मास्टर टीटू है. मास्टर टीटू ने न सिर्फ अमिताभ बच्चन(Amitabh bachchan) और राजेश खन्ना के बचपन के किरदार निभाए, बल्कि बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट शशि कपूर संग सुपरहिट फिल्म ‘आ गले लग जा’ दी थी. टीटू शशि कपूर को अंकल कहते थे. इस फिल्म में काम करते वक्त टीटू मात्र 6-7 साल के थे.
इतना ही नहीं, फिल्म ‘सुहाग’ में मास्टर टीटू ने शशि कपूर (Shashi Kapoor) के बचपन का किरदार भी निभाया था. मास्टर टीटू कानाम ‘टीटू खत्री’ है. उस दौर में वह एक पॉपुलर चाइल्ड आर्टिस्ट थे. टीटू बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट घर-घर में पहचाने जाने लगे थे. लेकिनबड़े-बड़े होते उनकी पहचान धुंधली होने लगी. वह साइड रोल में दिखने लगे थे. लेकिन पहली जितनी पॉपुलैरिटी नहीं रही.
अब ये काम कर रहे हैं टीटू खत्री
धीरे-धीरें उन्होंने एक्टिंग की दुनिया से किनारा कर लिया और स्क्रिप्ट राइटिंग और विज्ञापनों और टीवी सीरियल्स को डायरेक्ट करनेलगे. उन्होंने कुबुल है, ‘सपने सुहाने लड़कपन के’, ‘रब से सोना इश्क’ जैसे कई शो लॉन्च किए हैं. वह कई टीवी चैनलों को साथ मिलकरकाम कर चुके हैं. वह इन दिनों वायकॉम 18 के इनहाउस डायरेक्टर हैं.