बॉलीवुड के देखे अनदेखे चेहरे
आई एस जोहर : हिंदी सिनेमा के प्रतिभावान और कलाकारों में से एक
फ़िल्म 'शागिर्द' में जॉय मुखर्जी के साथ उनकी अधेड़ उम्र के आशिक़ की भूमिका आप लोगो को शायद याद होगी
फ़िल्म के प्रसिद्ध गीत 'बड़े मियां दीवाने, ऐसे न बनो / हसीना क्या चाहे हमसे सुनो' के बजते ही जोहर का चेहरा नज़र आने लगता है. जौहर साहब सबसे पहले एक मशहूर फ़िल्म कलाकार, जो कभी फ़िल्म का हीरो तो कभी हास्य अभिनेता की तरह पर्दे पर नज़र आता. लेकिन पर्दे से परे वे लेखक, निर्माता-निर्देशक भी थे. हिंदी सिनेमा के हरफ़न मौला.कलाकारों में से एक थे आई एस जोहर. जिनका पूरानाम इन्द्र सेन जोहर.था इनका जन्म पंजाब के चकवाल जिले की तलागंग तहसील (अब पाकिस्तान में) 16 फरवरी 1920 को हुआ था
असल में उनके फ़िल्मी सफर की शुरूआत ही प्रसिद्ध निर्माता- निर्देशक रूप के शोरी की फ़िल्म 'एक थी लड़की' के लेखक के तौर परही हुई. इसी फ़िल्म में हास्य अभिनेता मजनू के साथ जोड़ी बनाकर एक भूमिका भी निभाई. अगले 35 बरस तक जोहर पर्दे पर लगातारछाए रहे.आईएस जोहर को जॉनी मेरा नाम फ़िल्म में तिहरी भूमिका के लिए फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड मिला था.
दिलीप कुमार, देवानंद, शम्मी कपूर, राजेश खन्ना, जॉय मुखर्जी जैसे कई सितारों के साथ हास्य भूमिकाओं के अलावा किशोर कुमार केसाथ 'बेवकूफ' (1960), 'अकलमंद' (1966) और 'श्रीमान जी' (1968) और महमूद के साथ 'जोहर महमूद इन गोआ' (1965), 'जोहर - महमूद इन हांगकांग ' (1971) में जोड़ी बनाकर मुख्य भूमिकाओं में भी काम किया.
अपनी फ़िल्म 'जोहर महमूद इन गोआ' की कामयाबी से इतने उत्साहित हो गए कि उन्होंने अपने ही नाम से दो और फ़िल्में 'जोहर इनकाश्मीर' (1966) और 'जोहर इन बाम्बे' भी बना डाली. दोनो ही फ़िल्में फ्लॉप हुईं.
अलबत्ता विजय आनंद के निदेशन में बनी सुपर हिट फ़िल्म 'जॉनी मेरा नाम' (1970) में अपनी तिहरी हास्य भूमिका के लिए उन्हेंफ़िल्मफेयर अवार्ड ज़रूर मिला. इस फ़िल्म में उनके तीनों रूप ‘पहलाराम', ‘दूजाराम' और 'तीजाराम' आज भी दर्शकों के दिलों में आजभी ज़िंदा हैं.
मगर फ़िल्मों में अभिनय करने भर से कोई हरफ़न मौला कहलाने का हक़दार नहीं हो जाता.
उसके लिए बहुत कुछ ऐसा करना होता है जो अमूमन नहीं होता.. अब जैसे आईएस जोहर ने दो बार एमए किया. पहली बार अर्थशास्त्रमें, दूसरी मर्तबा राजनीति शास्त्र में.
फिर भी दिल नहीं माना तो वकालत की डिग्री हासिल करने के लिए एलएलबी भी कर डाला.
पेशा चुनने का मौका आया तो पेशा इख्तियार किया फ़िल्म लेखक और अभिनेता का पहला कदम सही पड़ा तो फिर डायरेक्टर भी बनगए.
उन्होंने उम्र भर अनगिनत इश्क़ किए और शायद आधा दर्जन शादियां भी कीं. पहली पत्नी रमा बंस से भले ही आख़िर तक प्रेम का नाताबना रहा लेकिन अलगाव काफ़ी पहले हो गया था.
फिर उनकी ज़िंदगी में प्रोतिमा बेदी भी आईं. प्रसिद्ध कैमरामैन जल मिस्त्री की पत्नी को भी वे एक क्रिकेट मैच देखते-देखते ले उड़े.
याद पड़ता है कि एक बार बातचीत में उन्होंने बताया था कि जब वे लाहौर के एफसी कालेज में छात्र थे तो कोई लड़की उन्हें घास नहींडालती थी.
वजह यह कि उस वक़्त वे काफ़ी दुबले-पतले थे और हड्डियों का ढांचा भर नज़र आते थे.
अपनी इसी कमज़ोरी को ढकने के लिए और लड़कियों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए उन्होंने लिखना शुरू कर दिया. पहले कुछलेख और फिर नाटक लिखना शुरू किया.
ज़ाहिर है कि वे अपने मक़सद में कामयाब हुए. 'कामयाब न होता तो लिखता ही क्यों रहता?' उन्होंने कहा था.
उनकी शुरुआती फ़िल्में उनके इस बयान की ताईद करती हुई लगती हैं. साठ के दशक में कामयाबी की चर्बी जिस्म पर चढ़ी तो हुलियाकुछ बेहतर हुआ.
वर्ष 1977 में इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी के विरुद्ध फ़िल्म वालों ने जनता पार्टी को मदद की. जब जनता सरकार ने भी निराश किया तोजोहर के निशाने पर समाजवादी नेता राज नारायण आ गए, जो उस समय सरकार में मंत्री भी थे.
जोहर जब-तब उनको अपने बयानों से छेड़ते थे. उन्होने घोषणा कर दी कि जहां से भी राज नारायण चुनाव लड़ेंगे वे उनके विरुद्ध खड़ेहोंगे.
नेताजी के नाम से लोकप्रिय राजनारायण जी उनसे काफ़ी परेशान रहे. यह और बात है कि फ़िल्मों में उनकी कॉमेडी पर हंसने वालों नेचुनाव में उनको कभी गंभीरता से नहीं लिया. यह भी सच है कि वे ख़ुद भी अपने चुनाव को गंभीरता से नहीं लेते थे.
अंग्रेज़ी फ़िल्म पत्रिका 'फ़िल्मफेयर' में उनका सवाल-जवाब का कॉलम ‘क्वेश्चन बाक्स' बेहद पापुलर था. 1978 में जब मेनका गांधी ने'सूर्या' नाम से एक पत्रिका शुरू की तो उसमें आईएस जोहर का एक कॉलम भी छपता था 'री-राईटिंग आफ़ द हिस्ट्री' जिसमें वेतात्कालिक राजनतिक-सामाजिक घटनाओं पर व्यंग लिखते थे.
उन्होने ख़ुद को भले ही कभी गंभीरता से न लिया हो लेकिन हॉलीवुड ने उनको बड़ी गंभीरता से लिया. इसी कारण उनको 'हैरी ब्लैक' (1958), 'नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर' (1959), 'लारेंस आफ़ अरेबिया' (1962) और 'डेथ आन द नाईल' (1978) जैसी फ़िल्मों में कास्टकिया.
जिस वक़्त पाकिस्तान में जनरल जिया-उल-हक़ ने ज़ुल्फिकार अली भुट्टो का तख़्तापलट कर फांसी देने का षड़यंत्र रचा तब इस विषयपर आईएस जोहर ने एक नाटक लिखा था 'भुट्टो' जो बहुत चर्चित भी हुआ और प्रशंसा भी पाई. इस नाटक के अलावा जोहर ने लगभगएक दर्जन और भी नाटक लिखे लेकिन वे इतने चर्चित नहीं हुए.
10 मार्च 1984 को सात महीने की लंबी बीमारी के बाद उनका देहांत हो गया. मरने से पहले तक उनके सेंस आफ ह्यूमर में कोई कमीनहीं आई.
मृत्यु के दो-तीन दिन पहले उन्होंने अपने बेटे अनिल और बेटी अंबिका को बुलाकर कहा था- 'मेरे मरने की ख़बर छपे तो मुझे अख़बारभेजना मत भूलना '.मगर जाने से पहले अपने कारनामों की बदौलत एक यादगार इंसान बन गए. बॉलीवुड के ऐसे विरले कलाकारआईएस जौहर साहब को सादर अभिवादन 🙏🙏🙏
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के सी बोकाड़िया :80 और 90 के दशक के एक बेहद सफल निर्माता और निर्देशक
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के सी बोकाडिया के फिल्मों में प्रवेश को लेकर भी दिलचस्प कहानी है एक बार,बोकाडिया साहब राजस्थान से मद्रास की एक ट्रेन में यात्रा कर रहे थे, तो उनकी मुलाकात फिल्म गोल्डन स्टूडियो के मालिक से हुई, जिन्होंने वीके रमन के साथ भारतीय फिल्म का निर्देशन किया, उनकी मुलाकात की व्यवस्था की। उन्होंने वीके रमन के साथ हिंदीफिल्म 'रिवाज' (1972) में काम करना शुरू किया, लेकिन वीके रमन फिल्म से बाहर हो गए। इसके बाद वे एक और प्रसिद्ध भारतीय फिल्म निर्देशक के आसिफ से मिले और उनके साथ कई सुपरहिट हिंदी फिल्मों में काम किया 1972 में जुड़ाव के साथ निर्माता के रूप में अपनी शुरुआत की। के आसिफ के आकस्मिक निधन के बाद, उन्होंनेआसिफ की आखिरी फिल्म "लव एंड गॉड" को पूरी तरह से करने और रिलीज करने में मदद की।बतौर
निर्माता के रूप में के सी बोकाडिया ने अनेकों सुपरहिट फिल्म बनाई जिसमे से प्रमुख फिल्म इस प्रकार है
रिवाज(1972)
तेरी मेहरबानियां(1985)
प्यार झुकता नहीं(1985)
नसीब अपना अपना(1986)
जवाब हम देंगे(1987)
कुदरत का कानून(1987)
कब तक चुप रहूंगी(1988)
गंगा तेरे देश में(1988)
मैं तेरा दुश्मन(1989)
आज का अर्जुन(1990)
फूल बने अंगारे(1991)
पुलिस और मुजरिम(1992)
मेरे सजना साथ निभाना(1992)
तहकीकात(1993)
आओ प्यार करें(1994)
जनता की अदालत(1994)
ज़ख्मी सिपाही(1995)
मुकद्दमा(1996)
हिटलर (1998)
लाल बादशाह(1999)
सुल्तान(प्रस्तुति निर्माता) (2000)
प्यार जिंदगी है(2001)
हम तुम्हारे हैं सनम(2002)
खुदा कसम (2010)
निर्देशन के रूप बोकाडिया साहब ने पहली फिल्म आज का अर्जुन (1990) में बनाया अमिताभ बच्चन ने अभिनय किया था।के सीबोकाडिया के
निदेशक के तौर पर बनाई गई कुछ फिल्म इस प्रकार है
1987 कुदरत का कानून बीना बनर्जी, रमेश देव, सीएस दुबे
1990 आज का अर्जुन अमिताभ बच्चन,जया प्रदा
1991 फूल बने अंगराय रजनीकांत,रेखा,प्रेम चोपड़ा
1992 पुलिस और मुजरिम राज कुमार,विनोद खन्ना,मीनाक्षी शेषाद्री
1992 त्यागी रजनीकांत,जया प्रदा,भाग्यश्री, हिमालय
1993 कुंदन धर्मेंद्र,जया प्रदा,अमरीश पुरी
1993 इंसानियत के देवता राज कुमार,विनोद खन्ना,जया प्रदा,मनीषा कोइराला
1993 शक्तिमान अजय देवगन,करिश्मा कपूर,मुकेश खन्ना,कुलभूषण खरबंदा
1993 दिल है बेताब अजय देवगन,विवेक मुशरान,प्रतिभा सिन्हा
1994 मोह की आरज़ू ज़ेबा बख्तियार, राकेश बेदी, अश्विनी भावे
1995 मैदान-ए-जंग धर्मेंद्र,जया प्रदा,अक्षय कुमार,करिश्मा कपूर
1996 मुक्दमा विनोद खन्ना आदित्य पंचोली,महेश आनंद,ज़ेबा बख्तियार,गुलशन ग्रोवर
1998 ज़ुल्म-ओ-सीताम अर्जुन सरजा,महेश आनंद, विकास आनंद,किशोर आनंद भानुशाली
1999 लाल बादशाह अमिताभ बच्चन,मनीषा कोइराला,शिल्पा शेट्टी,राधिका
2006 निडर तन्वी वर्मा,प्रेम चोपड़ा,शक्ति कपूर
2010 खुदा कसम सनी देओल,तब्बू
2013 दीवाना मैं दीवाना गोविंदा,प्रियंका चोपड़ा,कादर खान
2015 डर्टी पॉलिटिक्स मल्लिका शेरावत,जैकी श्रॉफ,अनुपम खेर,ओम पुरी,नसीरुद्दीन शाह
2019 रॉकी: द रिवेंज श्रीकांत, आशन्या माहेश्वरी,नासर,सयाजी शिंदे
के सी बोकाडिया सबसे तेज गति से फिल्म बनाने के लिए जाने जाते है। उन्होंने एक समय में "50 फिल्में बनाने वाले सबसे तेजनिर्माता" कहा गया था । उन्होंने 'तेरी मेहरबानिया' जैसी अपरंपरागत फिल्में बनाईं जिनमें प्रमुख पात्र एक कुत्ता था। उन्होंने तेरीमेहरबानियां, मैं दुश्मन को देखता हूं, कुंदन जैसे जानवरों पर फिल्में भी बनाई हैं।1972से फिल्म इंडस्ट्री में एक्टिव बोकाडिया साहब नेबड़े बड़े सुपरस्टार को लेकर फिल्म बनाई अभिनेताराजेश खन्ना,जीतेंद्र,अमिताभ बच्चन,शत्रुघ्न सिन्हा,सैफ अली खान,राजकुमार,सलमान खान,सनी देओल, शाहरुखखान,विनोद खन्ना,अजय देवगन,धर्मेंद्र,अक्षय कुमार,मिथुन चक्रवर्ती,जैकी श्रॉफ,गोविंदा के साथ बोकाडिया जी ने सफल फिल्मे दी
‘मध्यमार्गी सिनेमा के अद्भुत सृजनकर्ता जिन्होंने मध्यवर्गीय परिवार को केंद्र में रखकर फ़िल्में बनायी ‘:(बासु चटर्जी)
हिन्दी सिनेमा का एक ऐसा फ़िल्मकार, एक ऐसा सृजनकर्ता, मध्यम वर्ग की कहानियों को बड़े पर्दे पर उतारने वाले लेखक, पटकथा लेखक, 'बासु चटर्जी',...
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