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कहानी अधूरी फिल्मों की(18)-दिलीप कुमार और रेखा अभिनीत फिल्म ‘आग का दरिया’ का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे.मगर जीसे सिनेमा का परदा अब तक नसीब नहीं हुआ.


दिलीप कुमार और रेखा अभिनीत फिल्म ‘आग का दरिया’ एक ऐसी फिल्म थी जिसका दर्शक बेसब्री से इंतजार कर रहे थे.मगर जीसे सिनेमा का परदा अब तक नसीब नहीं हुआ।


1984मे कन्नड निर्देशक एस.वी.राजेंद्र सिंह ‘बाबू’ बडा नाम थे.उनकी फिल्म ‘ मेरी आवाज सुनो’ अपने अलग ढंग के प्रस्तुतीकरण के कारण चर्चित और अत्यंत सफल हुई थी. इस फिल्म को राजनेताओं के खलनायक के रुप मे चरित्र चित्रण और हिंसा का दोषी मानकर प्रदर्शन के बाद बैन कर दिया गया था. अदालती आदेश से फिल्म पर से बैन हटा और फिल्म लोकप्रिय हुई. इस फिल्म के बाद राजेंद्र सिंह बाबू ने हेमा मालिनी के लिए शरारा,संजय दत्त के साथ ‘मेरा फैसला’ और कुमार गौरव के साथ ‘एक से भले दो’ फिल्में बनाई.


दिलीप कुमार को आग का दरिया की कहानी की रूप रेखा बताते ही वे फिल्म करने के लिए तैयार हो गये. फिल्म मे उनके साथ अभिनेत्री रेखा थी.युवा भुमिकाओं मे पद्मिनी कल्हापुरे और राजिव कपूर थे.अमरिश पुरी मुख्य खलनायक थे. गीतकार एवम् लेखक राजेंद्र कृष्ण के संवाद और गीतों से सजी ये अंतिम फिल्म है.संगीत लक्ष्मिकांत प्यारेलाल का था.


फिल्म की कहानी एअर मार्शल अर्जुन (दिलीप कुमार) की है जो अपनी पत्नी रमोला( रेखा) और बेटी पिंकी के साथ सुखमय जीवन व्यतित कर रहा है. अपने कर्तव्य मे दक्ष अर्जुन को भारतीय वायु सेना को निम्न दर्जे के पुर्जे बेचने वाली कंपनियों के खिलाफ जांच अधिकारी बनाया जाता है. कंपनियों द्वारा दी गई रिश्वत की पशकश ठुकराने के बाद उसके परिवार को तहस नहस कर दिया जाता है.पिंकी का अपहरण कर उसे वेश्यालय मे बेच दिया जाता है. दुखी रमोला भी अपने पती से अलग हो जाती है.रमोला की मां अपने अखबार मे अर्जुन के रिश्वत लेने संबंधी खबर छाप देती है.अर्जुन अपनी बेटी को ढुंढने,परिवार को फिर एक करने और गुनहगारों को सजा दिलवाने मे कैसे सफल होताहै?
फिल्म के निर्माण के दौरान निर्माता की मृत्यु हो गई. फिल्म को फाइनेंसरों से धन लेकर पुर्ण किया गया.फिल्म सेंसर सर्टिफिकेट तक प्राप्त करने के बाद भी आर्थिक पचडों मे फंसकर रिलिज नहीं हो पाई. समय के साथ फिल्म के निगेटिव भी खराब हो गये.फिल्म को परदे तक पहुंचाने की कोशिश मे फिल्म का एक अच्छा प्रिंट सिंगापूर मे वितरक के पास मिला जीसे डिजिटाइज किया गया है.
मगर अब भी कुछ आर्थिक लेन देन बाकी होने बाकी है.
कुछ समय पहले प्रकाशित एक साक्षात्कार मे राजेंद्र सिंह बाबू ने हिंदी सिनेमा के बडे सितारों से बकाया करीब चार करोड के भुगतान मे सहायक बन दिलीप साहब की अंतिम फिल्म दर्शकों तक पहुंचाने की अपिल की है.

फिल्म के ट्रेलर के कुछ हिस्से यु ट्यूब पर है.

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