गीतकार साहिर लुधियानवी जावेद अख्तर के पिता और मामा के करीबी दोस्त हुआ करते थे। जब जावेद अख्तर मुंबई कुछ बनने के लिए आए तो अक्सर साहिर लुधियानवी से मिला करते थे। उस वक्त साहिर लुधियानवी एक बंगले में और जावेद अख्तर कमल स्टूडियो के स्टोर रूम में एक छोटी सी जगह पर रहा करते थे। साहिर जावेद को नौजवान कहा कर बुलाया करते थे। एक दिन जावेद अख्तर के पास सिर्फ 20 रुपए थे, जावेद अख्तर साहिर लुधियानवी के पास सुबह सुबह ही पहुंच गए और कहां की उन्हें कैसे भी कोई काम दिलवा दे। साहिर अपने कमरे में गए और वापस आकर मेज पर 200 रुपए रख कर बोले कि उन्होंने भी ऐसे गर्दिश के दिन देखे है। ये 200 रुपए ले जाओ और जब कभी तुम्हारे पास वापस लौटाने की इच्छा हो तो लौटा देना। वक्त बदला, किस्मत बदली और फिर एक दिन ऐसा भी आया कि जब सलीम जावेद की जोड़ी की बाते हर जगह होने लगी। यहां तक कि सलीम जावेद की लिखी फिल्में दीवार, त्रिशूल और काला पत्थर में साहिर लुधियानवी के ही लिखे हुए गीत थे। कई बार किसी फिल्म की मीटिंग में जावेद और साहिर लुधियानवी मिलते तो जावेद अख्तर मजाक मजाक में बोल दिया करते की साहिर जी आपके 200 रुपए मेरे पास है पर मैं कभी आपको दूंगा नही। ये सुनकर साहिर लुधियानवी भी मुस्कुरा कर रह जाते। 25 अक्टूबर 1980 को साहिर लुधियानवी का निधन हो गया । साहिर लुधियानवी को सुपुर्दे ए खाक करने के बाद जैसे ही जावेद अख्तर कब्रिस्तान से बाहर आए और कार में बैठने ही वाले थे कि पीछे से एक आवाज आई। लेखिका वहीदा तबस्सुम के पति अशफाक जो साहिर लुधियानवी के करीबी दोस्त थे ने जावेद अख्तर को कहा कि आपके पास कुछ पैसे है क्या ? मैं सुबह जल्दी जल्दी घर से निकलने के चक्कर में बटुआ घर ही भूल आया। जावेद अख्तर ने कहा कि हां पर आपको पैसे की यहां क्या जरूरत आन पड़ी ? तो अशफाक ने कहा कि जिस आदमी ने साहिर साहब की कब्र बनाई है उसको देने के लिए 200 रुपए कम पड़ गए है, बस वो ही देने है। जावेद अख्तर ने उसी वक्त 200 रुपए निकाल कर अशफाक को दे दिए। इस तरह साहिर लुधियानवी का दिया हुआ 200 रुपए का कर्ज साहिर लुधियानवी ने अपने चले जाने के बाद इस तरह से आखिर ले ही लिया ।