पुणे के एफ टी आई आई से एक्टिंग का कोर्स करने के बाद सुभाष घई बंबई आए फिल्मों में अपनी किस्मत चमकाने। कुछ फिल्मों में एक्टिंग करने का मौका भी मिला लेकिन छोटे मोटे रोल करने के अलावा बात कहीं बन नही रही थी। इसी बीच उन्होंने एक कहानी लिखी जिसपर निर्देशक दुलाल गुहा ने शत्रुघ्न सिन्हा को लेकर एक फिल्म भी बना डाली, खान दोस्त। इसके बात सुभाष घई ने एक और कहानी लिखी और निर्माताओं के ऑफिस के चक्कर काटने लगे लेकिन हर कोई उनकी लिखी कहानी को ठुकराने लगा। ऐसे ही वो पहुंचे निर्माता एन एन सिप्पी के ऑफिस और उन्हें अपनी लिखी कहानी सुनाई। एन एन सिप्पी को कहानी तो पसंद आई लेकिन सुभाष घई को कहा की इस कहानी पर बनी फिल्म का निर्देशन करेगा कौन ? सुभाष घई ने बोल दिया मैं कर लूंगा। जवाब में एन एन सिप्पी ने कहा कि तुमने न तो कोई निर्देशन का कोर्स किया है और न ही किसी निर्देशक के साथ सहायक निर्देशक के रूप में काम किया है और तुम बोल रहे हो तुम मेरी फिल्म का निर्देशन करोगे, मैं इतना बड़ा खतरा मोल क्यो लूं ? जवाब में सुभाष घई ने कहा कि मैं तो ऐसे ही मजाक में बोल रहा था, आपने पूछा तो मैंने ऐसे ही बोल दिया। कुछ दिन बाद एन एन सिप्पी ने एक पार्टी रखी जिसमे सुभाष घई को भी बुलाया गया। पार्टी में एन एन सिप्पी ने घोषणा की कि मेरी अगली बनने वाली फिल्म की कहानी को लिखा है इस लड़के सुभाष घई ने और इस फिल्म का निर्देशन भी यही करेंगे। ये सुनकर सुभाष घई आश्चर्यचकित हो गए। खैर, सुभाष घई ने अपनी लिखी कहानी पर इस फिल्म का निर्देशन किया। फिल्म का नाम था, कालीचरण। फिल्म रिलीज हुई और हो गई सुपरहिट। इसके बाद सुभाष घई फिल्मों के निर्देशन की ओर बढ़ गए ।