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कैसे सुभाष घई ने अपने गुरु की चिंता दूर करके एक तरह से उनका अहसान चुकता किया ।

सुभाष घई ने अपने फिल्मी निर्देशन की शुरुआत फिल्म कालीचरण से की जिसके निर्माता थे एन एन सिप्पी। 1980 में फिल्म कर्ज से सुभाष घई फिल्म निर्माता भी बन गए और अपना प्रोडक्शन हाउस मुक्ता आर्ट्स शुरू कर दिया। इसके बाद उन्होंने दूसरे निर्माताओं की फिल्म क्रोधी और विधाता का निर्देशन करने के बाद दूसरे फिल्म फिल्म निर्माताओं की फिल्म का निर्देशन करने से मना कर दिया और पूरा ध्यान अपने मुक्त आर्ट्स प्रोडक्शन लगा दिया जिसके तले उन्होंने हीरो जैसी सुपरहिट फिल्म भी बनाई । लेकिन 1985 में उनको पहली बार फिल्म निर्देशन करने का मौका देने वाले निर्माता ने अपनी फिल्म मेरी जंग का निर्देशन करने के बात कही तो सुभाष घई उन्हें मना नहीं कर सके। इसके बाद उन्होंने अपने प्रोडक्शन हाउस की कर्मा और राम लखन जैसी हिट फिल्में दी और सौदागर की कहानी पर काम करने लगे। उस वक्त तक सुभाष घई का नाम हिंदी फिल्मों के बेहतरीन फिल्म निर्देशकों में से सबसे उच्च कोटि के निर्देशक में गिना जाता था। 1989 में निर्माता एन एन सिप्पी एक फिल्म बना रहे थे, आग से खेलेंगे। इस फिल्म का निर्देशन कर रहे थे भास्कर शेट्टी। फिल्म की शूटिंग तकरीबन पूरी हो चुकी थी बस फिल्म के आखरी कुछ सीन की शूटिंग करना बाकी था, तभी निर्देशक भास्कर शेट्टी की एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई। फिल्म के बचे सीन की शूटिंग रुक गई और निर्माता एन एन सिप्पी की चिंता बढ़ गई क्योंकि वो अधिक समय तक फिल्म में काम करने वाले कलाकार अनिल कपूर, जितेंद्र, किमी काटकर और मीनाक्षी शेषाद्रि की अन्य निर्माताओं के साथ व्यस्त तारीखों की वजह से शूटिंग अधिक समय तक रोक नहीं सकते थे। तब एन एन सिप्पी को एक बार फिर याद आई सुभाष घई की। अति व्यस्त होने के बावजूद सुभाष घई ने एन एन सिप्पी को चिंता न करने की बात कह कर खुद आगे बढ़कर फिल्म आग से खेलेंगे के बची हुई फिल्म की शूटिंग का खुद निर्देशन किया । इस तरह उन्होंने अपने गुरु का थोड़ा सा एहसान तो चुकता कर ही दिया।

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