महज 24 साल की उम्र में राज कपूर फिल्म निर्देशक बन गए थे. वे असल मायनों में शोमैन थे. जानिए उनके जीवन से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से।
14 दिसंबर 1924 को पेशावर (अब पाकिस्तान) में जन्मे राजकपूर के बारे में ये बात कम ही लोग जानते हैं कि वो मध्यप्रदेश के दामाद थे. हिंदी सिनेमा के शोमैन राज कपूर वैसे तो दुनिया भर में मशहूर रहे, लेकिन मध्यप्रदेश के रीवा से उनका खास कनेक्शन है।
तीन नेशनल अवॉर्ड्स, 11 फिल्मफेयर ट्रॉफी, पद्म भूषण और दादा साहब फाल्के अवॉर्ड. फिर भी राज कपूर को सफलता के इन आंकड़ों में बांधा नहीं जा सकता. उन्हें याद करने के लिए किसी एक फिल्म का जिक्र नहीं किया जा सकता. उन्हें जानने-समझने के लिए 24 साल के उस लड़के के पास जाना होगा, जो इसी उम्र में एक बड़ा फिल्म डायरेक्टर बन गया था. वो लड़का, जिसने खुद को फिल्म मेकिंग का एक ऐसा स्कूल बना लिया, जहां पढ़ने के लिए एडमिशन लेने की जरूरत नहीं थी. जो इसके करीब आता, कुछ न कुछ सीखकर जाता. आज ही के दिन सन 1924 में पाकिस्तान के पेशावर में पैदा हुए थे राज कपूर. वह जब इस दुनिया से गए तो शोमैन बनकर गए. उनका शो आज भी जारी है।
शुरुआत में म्यूजिक डायरेक्टर बनना चाहते थे राज कपूर
राज कपूर शुरुआत में म्यूजिक डायरेक्टर बनाना चाहते थे लेकिन फिर सब कुछ बन गए- प्रोड्यूसर, डायरेक्टर और एक्टर. शुरुआत हुई 24 साल की उम्र से. फिल्म ‘आग’ के निर्देशन से वह सबसे युवा फिल्म निर्देशक बनकर सामने आए. 1948 में उन्होंने आरके फिल्मस के नाम से फिल्म स्टूडियो बनाया. इस स्टूडियो की पहली हिट फिल्म थी ‘बरसात’. इस फिल्म में उनका और नरगिस का एक सीन इतना पसंद किया गया कि बाद में वही आर.के फिल्म्स का लोगो भी बना. राज कपूर का असली नाम रणबीर था, जो कि अब उनके पोते का नाम है।
उस दौर में किसी के लिए भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि पाना मुश्किल था, लेकिन राज कपूर उस वक्त भी सिर्फ भारत ही नहीं दुनियाभर में मशहूर थे. वह रूस, अफ्रीका, मिडिल ईस्ट, चीन, तुर्की तक पहचाने जाते थे. राज कपूर की फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ पहली ऐसी फिल्म थी, जिसमें दो इंटरवल थे. ये फिल्म साढ़े चार घंटे लंबी थी. ये आज भी हिंदी सिनेमा की सबसे मशहूर फिल्म है।
इसे लकी चार्म कहें या उनकी निजी पसंद, लेकिन राज कपूर अपनी हर फिल्म में हीरोइन को सफेद साड़ी जरूर पहनाते थे. कहा जाता है कि एक बार उन्होंने पत्नी को सफेद साड़ी तोहफे में दी, ये साड़ी उन्हें इतनी पसंद आई कि इसके बाद उनकी सभी हीरोइंस ने सफेद साड़ी पहनी।
ऋषिकेश मुखर्जी को फिल्म ‘आनंद’ बनाने का आइडिया उनकी और अपनी दोस्ती की वजह से ही आया था. जब राज कपूर की तबियत खराब रहने लगी थी, तब उन्हें खोने का डर मुखर्जी को बहुत परेशान करता था. इसी डर को बाद में उन्होंने ‘आनंद’ फिल्म में दिखाया. फिल्म काफी पसंद की गई।
राज कपूर की तबियत काफी खराब थी, फिर भी जब दादा साहब फाल्के अवॉर्ड के लिए उन्हें दिल्ली आने का न्यौता मिला, तो वो मान गए. ये अवॉर्ड सेरेमनी दिल्ली के सीरीफोर्ट ऑडिटोरियम में होनी थी. सुरक्षा कारणों से इस इवेंट में राज कपूर को ऑक्सीजन सिलिंडर ले जाने की परमिशन नहीं मिली. जब उनके नाम की घोषणा हुई, तभी उन्हें सीने में तेज दर्द हुआ. ये देखकर तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकट रमन प्रोटोकॉल तोड़कर स्टेज से नीचे उनके पास आ गए. तब राज कपूर को एम्स ले जाया गया था. एक महीने तक अस्पताल में रहने के बाद आखिर राज कपूर ने दम तोड़ दिया।
उनके बारे में मशहूर कई दिलचस्प बातों में एक ये भी थी कि वो आर के स्टूडियो में अपना मेकअप रूम किसी और को इस्तेमाल नहीं करने देते थे, लेकिन सिर्फ देव साहब को इसकी इजाज़त थी।