मीना कुमारी ने अपनी पूरी जिंदगी दूसरो की मदद करने में निकाल दी। उनकी वजह से 34 लोगो का घर चलता था । निर्माता निर्देशक सावन कुमार की मदद भी उन्होंने की। जब सावन कुमार संघर्ष कर रहे थे तब सावन कुमार की पहली फिल्म गोमती के किनारे के लिए फाइनेंस कराने में भी मीना कुमारी ने उनकी मदद की, साथ ही इस फिल्म में काम करने के लिए खुद उन्होंने कलाकारों से विनती कर करके राजी करवाया । फिल्म में काम करने वाले सब कलाकारों की फीस तो अदा कर दी गई पर फिर भी एक कलाकार की रह गई थी जिनकी फीस उसे मिली नही और वो थी अभिनेत्री मुमताज। मुमताज के 3 लाख रुपए बकाया थे फीस के। मुमताज मीना कुमार को आपा(बड़ी बहन) कह कर बुलाया करती थी। यही कारण था की मुमताज ने मीना कुमारी से कभी भी ये 3 लाख रुपए न मांगे न इसका जिक्र किया। आखिर में वो दिन आ गया जब मीना कुमारी चंद दिनों की मेहमान रह गई थी। अस्पताल में खून की उलटी करती हुई वो अकेली थी, वो सब लोग जिनकी उसने जिंदगी भर मदद की वो सब उसका साथ छोड़ चुके थे। एक एक पैसे की वो मौहताज हो चुकी थी, अस्पताल का बिल भी कौन चुकता करेगा ये भी कुछ नहीं पता था। लेकिन इन सब बातों से अधिक मीना कुमारी को जिस बात की चिंता थी वो थी मुमताज को दिया जाने वाला कर्ज 3 लाख रुपए। मीना कुमारी मरने के बाद अपने साथ ये कर्ज का बोझ लेकर जाना नही चाहती थी। मीना कुमारी के पास अब सिर्फ एक चीज ही बची थी और वो था कार्टर रोड का उसका एक बंगला जो उसे फिल्म अभिलाषा की फीस के तौर पर मिला था। उन्होंने मुमताज की बहन मल्लिका को बुलाया और कहा की मुमताज़ को वो ये बंगला उसकी बची हुई फीस के रूप में देना चाहती है। मल्लिका ने कहा भी कि आप उसकी बड़ी बहन जैसी हो तो फिर किस बात का कर्जा । लेकिन मीना कुमारी मानी नहीं और कहा कि मैं जानती हुं इस बंगले की कीमत 3 लाख रुपए से काफी ज्यादा है पर कर्ज तो चुकाना ही है। इसलिए ये 3 लाख रुपए के अलावा जो रकम बंगले की है वो रकम मेरी तरफ से मेरी छोटी बहन मुमताज को एक तोहफा। उन्होंने उसी वक्त एक वकील को बुलाकर अपना बंगला मुमताज के नाम कर दिया। इसके कुछ दिन बाद ही मीना कुमारी हमेशा के लिए ये दुनिया छोड़ कर चली गई।