1986 में निर्माता यश जौहर एक फिल्म बना रहे थे, मुकद्दर का फैसला। फिल्म में एक खास भूमिका के लिए वो प्राण साहब को लेना चाहते थे लेकिन प्राण साहब की फीस वो उस वक्त देने की हालत में नहीं थे। जब ये बात उन्होंने प्राण साहब को बताई तो प्राण साहब ने उन्हें कहा की आप फिल्म शुरू करे, फिल्म बनने के बाद आप मुझे मेरी फीस अदा कर देना, कोई जल्दी नही है। फिल्म बनी और हो गई बुरी तरह से फ्लॉप । यश जौहर के ऊपर काफी कर्ज हो गया जिसको चुकाने के लिए उन्होंने इधर उधर हाथ पैर मारे। बावजूद इसके वो प्राण साहब की फीस अदा नहीं कर पाए। इसके बाद उन्होंने 1990 में अग्निपथ, 1993 में गुमराह और 1998 में डुप्लीकेट बनाई लेकिन तीनों फिल्मों में से सिर्फ गुमराह ने औसत कारोबार किया, बाकी दोनों फिल्में चल नही पाई। यश जौहर पहले का भी कर्ज सही से चुका नही पाए थे, इन फिल्मों की वजह से उनके ऊपर ओर कर्जा हो गया। 1998 में ही यश जौहर के बेटे करन जौहर ने अपनी लिखी एक कहानी पर एक फिल्म बनाई, कुछ कुछ होता है। ये फिल्म हो गई ब्लॉकबस्टर। अपने बेटे की इस फिल्म की अपार सफलता की वजह से यश जौहर ने अपने सब कर्ज चुका दिए और फिर पहुंचे प्राण साहब के घर। उनके घर पहुंचकर उनसे देरी की क्षमा मागंते हुए यश जौहर ने मुकद्दर का फैसला फिल्म की फीस उन्हें अदा कर दी। लेकिन मुकद्दर का फैसला से लेकर कुछ कुछ होता है तक बीच में जो 11 साल निकले उनमें कभी भी प्राण साहब ने यश जौहर को अपनी फीस के बारे में नहीं कहा था।