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ढाबे पर काम करने वाला एक अभिनेता फिर से फिल्मों में कैसे आया ?

संजय मिश्रा के पिता शंभूनाथ मिश्रा सूचना प्रसारण मंत्रालय में काम किया करते थे और कला, संगीत के प्रेमी थे। मिश्रा जी का परिवार हमेशा सरकारी नौकरी को अधिक महत्व दिया करता था पर संजय मिश्रा के पिताजी चाहते थे कि संजय कला के क्षेत्र में जाए इसलिए उन्होंने उसका दाखिला नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में करवा दिया। संजय ने बाद में फिल्म और टेलीविजन में काम करना शुरू भी कर दिया पर उन्हें वो मुकाम नहीं मिला जो पिताजी देखना चाहते थे और एक दिन पिताजी इस दुनिया से चले भी गए। संजय अपने को अकेला महसूस करने लगा, उदास रहने लगा। एक दिन ऐसा भी आया की उसने घर, फिल्मे छोड़ दी और निकल पड़ा अकेला । भटकते भटकते ऋषिकेश पहुंच गया, लेकिन जाना पहचाना चेहरा था इसलिए लोग उसे पहचान जाते। एक दिन ऐसे ही भटकते हुए वो एक सरदार जी के ढाबे पर पहुंचा। ढाबे के मालिक ने उसे नही पहचाना । संजय ने सरदार जी से कुछ काम मांगा और उसे काम मिल भी गया। ऑमलेट और सब्जी बनाने का काम संजय करने लगा । कुछ लोग उसे पहचान भी जाते पर वो अपनी पूरी जिंदगी ढाबे पर इसी तरह काम करके निकालना चाहता था । एक दिन निर्देशक रोहित शेट्टी को संजय मिश्रा का ख्याल आया और संजय मिश्रा की तलाश शुरू कर दी और एक दिन उसे ढूंढ भी निकाला । लेकिन संजय फिर से फिल्म इंडस्ट्री में नही आना चाहता था इसलिए उसने रोहित को मना कर दिया पर रोहित ने उसे समझाया कि तुम्हारे पिता का सपना था तुम्हे एक कलाकार के रूप में देखना। अपने पिताजी की इच्छा पूरी करो, एक नया मुकाम बनाओ, ऐसे हार मत मानो। रोहित उसे किसी तरह से समझा बुझा कर फिर से फिल्मों में ले आए और संजय मिश्रा ने भी जी जान लगा कर जो काम शुरू किया वो आज भी कर रहे है ।

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