गुलजार ने अपने फिल्म के किरदारों को किस तरह गढ़ा है. गुलजार की दोस्ती के रंग भी बड़े चटख़ रहे हैं. एक सिनेकार और कवि, शायर के किरदार से अलग उन्हें बतर्ज़ इंसान देखना भी शानदार अनुभव है।
लता मंगेशकर पर लिखी अपनी ‘लता सुरगाथा’ के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीतने वाले मशहूर लेखक यतींद्र मिश्र की नई किताब ‘गुलज़ार सा’ब: हज़ार राहें मुड़ के देखीं’ वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हो चुकी है. एक बार फिर मशहूर फिल्मी हस्ती के जीवन को उन्होंने अपना विषय बनाया है. इस किताब में यतींद्र मिश्र ने बॉलीवुड के मशहूर गीतकार, डायरेक्टर और लेखक गुलजार की जिंदगी के उन पहलुओं और पन्नों को पेश किया है जिनसे उनके चाहने वाले अभी तक अनजान थे।
उन्होंने गुलजार की जिंदगी को अपनी कलम से बारीकी से उकेरा है और उनके लंबे साक्षात्कार के ज़रिए उनकी जिंदगी को गहराई से पाठकों के सामने पेश किया है. यतींद्र मिश्र ने गुलजार से जुड़ा एक बहुत ही बेहतरीन किस्सा इस किताब में पेश किया है, आप भी इसे पढ़ें और समझें कि गुलजार ने अपने फिल्म के किरदारों को किस तरह गढ़ा है. गुलजार की दोस्ती के रंग भी बड़े चटख़ रहे हैं. एक सिनेकार और कवि, शायर के किरदार से अलग उन्हें बतर्ज़ इंसान देखना भी शानदार अनुभव है, जब हम जान सकें कि संजीदा फ़िल्में बनाने और उतनी ही गहरी शायरी करने वाला व्यक्ति दोस्ती के लिए कुछ भी कर सकता था।
कुछ ऐसी मज़ेदार चीज़ें भी, जिसे उनके आज के क़द को देखते हुए पढ़ना हैरत-भरा लगने के साथ-साथ मानवीय भी लगता हो. जैसे, बिमल रॉय के साथ काम करते हुए वे अपने मित्र मुकुल दत्त के आग्रह पर उनके लिए प्रेम-पत्र लिखा करते थे. उन दिनों मुकुल दत्त बीते दौर की अभिनेत्री चांद उस्मानी पर आशिक़ थे. इस प्रसंग का मजेदार पहलू यह है कि जब मुकुल उनसे चिट्ठी लिखवाते थे…और लिखने के बाद गुलज़ार उसे पढ़कर दुरुस्त करना चाहें, तो उन्हें यह कहकर रोक देते थे-‘इसे पढ़ो मत, केवल लिखो.’ गुलज़ार साहब यह प्रसंग हंसते हुए बताते हैं कि मुकुल दत्त के वे गणेश बने हुए थे, जिनकी मोहब्बत के लिए उन्हें मुकुल बनकर ख़तो-किताबत करनी थी।