जितेंद्र के पिता ज्वैलरी के व्यापार के अलावा फिल्मों में इस्तेमाल होने वाली नकली ज्वैलरी की सप्लाई भी किया करते थे, इसलिए जितेंद्र भी फिल्म स्टूडियो के चक्कर लगा लिया करते। एक दिन राजकमल स्टूडियो में वी शांताराम की फिल्म नवरंग की शूटिंग चल रही थी । वी शांताराम की नजर जितेंद्र पर पड़ी तो ऐसे ही उसका हालचाल पूछने लगे और बातों बातों में ही जितेंद्र के मन की बात जान ली की वो फिल्मों में काम करना चाहते है। वी शांताराम ने जितेंद्र को नवरंग फिल्म में एक छोटा सा रोल दे दिया जिसमे उन्हें अभिनेता उल्लास के सामने एक डायलॉग बोलना था कि सरदार सरदार, दुश्मन टिड्डियो के दल की तरह बढ़ा ही आ रहा है। लेकिन जैसे ही जितेंद्र ये डायलॉग बोलते तो घबरा जाते और टिड्डियो की जगह कभी फिडडियो, कभी चड्डियो आदि बोलने लगते। बार बार रीटेक होने के बावजूद जितेंद्र टिड्डियां शब्द सही नही बोल पा रहे थे और जब काफी कोशिश करने के बाद भी वो सही नही बोले तो वी शांताराम का धैर्य जवाब दे गया और उन्होंने जितेंद्र को डांट दिया। जितेंद्र रोने लगे और 25 रीटेक के बाद भी वो टिड्डियां शब्द सही से नही बोल पाए तो वी शांताराम ने जितेंद्र के बोले गए वही फिड्डीया, चड्डिया शब्द को ही सीन में रख लिया । एक शब्द सही नही बोलने के बावजूद वी शांताराम ने जितेंद्र को न सिर्फ अपनी फिल्म सेहरा में भी छोटा सा रोल दिया बल्कि 1964 में इसी टिड्डी को फिड्डी शिड्डी बोलने वाले जितेंद्र को अपनी फिल्म का हीरो लेकर एक फिल्म भी बनाई, गीत गाया पत्थरों ने ।