70 के अंतिम दशक में उदित नारायण मुंबई में संगीत सीखने के साथ साथ गिरगांव के नजदीक रिकॉर्डिंग स्टूडियो के चक्कर लगाया करते थे। खर्चा चलाने के लिए वो होटलों में गाया भी करते थे। 1980 में संगीतकार राजेश रोशन ने उन्हें फिल्म उन्नीस बीस में मोहम्मद रफी और उषा मंगेशकर के साथ एक गीत गाने का मौका दिया लेकिन ये गीत कुछ खास प्रसिद्ध नही हुआ जिससे उदित नारायण को कुछ मदद नहीं मिली। संघर्ष चलता रहा और संघर्ष के ही दौरान उनकी मुलाकात हुई गीतकार अंजान से। अंजान ने उन्हें मिलवाया प्रख्यात संगीतकार चित्रगुप्त से। चित्रगुप्त ने एक भोजपुरी फिल्म में उदित नारायण को गीत गाने का मौका दिया। चित्रगुप्त ने अपने बेटे आनंद मिलिंद से भी उन्हें मिलवाया। आनंद मिलिंद उस समय मंसूर खान की फिल्म कयामत से कयामत तक में संगीत देने का काम कर रहे थे और उन्हें अपनी फिल्म के लिए एक नए गायक की भी तलाश थी। अपने पिता चित्रगुप्त के कहने पर आनंद मिलिंद ने उदित नारायण को कयामत से कयामत तक के सभी गीत गाने का अवसर दिया जिसमे से उनको सबसे ज्यादा प्रसिद्धि पापा कहते हैं गीत से मिली ।