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500 फिल्में करने वाला स्वतंत्रता सेनानी, नहीं मिली खबर तो परिवार समझ बैठा शहीद, स्टेशन पर फेंकी चिट्ठी और…

Bhojpuri Cinema, Freedom fighter Actor Nazir Hussain worked with Subhash Chandra Bose: फिल्मी दुनिया के कलाकारों की जीवनी यदि आप पढ़ने बैठें तो एक से बढ़कर एक नई जानकारियां मिलेंगी. बीते दौर के कुछ कलाकार तो ऐसे रहे हैं, जिन्हें इतनी स्टारडम नहीं मिली लेकिन इनका सिने जगत में इनका योगदान काफी रहा है. एक कलाकार तो ऐसे रहे हैं, जिन्होंने पहले देश के लिए लड़ाई लड़ी और फिर मनोरंजन जगत को में नाम कमाया. इन्होंने ना सिर्फ हिंदी सिनेमा में बल्कि भोजपुरी इंडस्ट्री को भी नया जीवन दिया. आइए, बताते हैं…

फोटो देखकर शायद आप इस कलाकार को पहचान गए होंगे या फिर चेहरा तो याद आ रहा होगा लेकिन नाम नहीं. बॉलीवुड में इन्होंने कैरेक्टर आर्टिस्ट के तौर पर खूब नाम कमाया. साथ ही इनकी वजह से ही आज भोजपुरी सिनेमा इतना समृद्ध है.

यहां जिस महान कलाकार का जिक्र हो रहा है, वे हैं नजीर हुसैन. नजीर का जन्म 15 मई 1922 को उत्तर प्रदेश के गांव उसिया में हुआ था. इनके पिता का नाम शहजाद खान था और वे भारतीय रेलवे में गार्ड की नौकरी करते थे. पिता की सिफारिश पर नजीर को भी रेलवे में फायरमैन की सरकारी नौकरी मिल गई थी. लेकिन कुछ महीने बाद नजीर ने नौकरी छोड़कर ब्रिटिश आर्मी जॉइन कर ली।

नौकरी के दौरान ही दूसरा विश्व युद्ध हुआ और नजीर को जंग के मैदान में भेज दिया गया. इनकी पोस्टिंग कुछ समय के लिए सिंगापुर और मलेशिया रही. माहौल खराब होने पर नजीर को युद्ध के दौरान बंदी बनाकर मलेशिया जेल में कैद कर लिया गया और फिर कुछ दिनों बाद रिहा करके भारत भेज दिया।

भारत लौटकर इन्होंने आजाद हिंद फौज जॉइन कर ली. नजीर सुभाष चंद्र बोस से प्रेरित होकर उनके नक्शे कदम पर चलने लगे. प्रचार प्रसार में वे प्रमुखता से भाग लिया करते थे. ऐसे में अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए इन्हें पकड़ लिया गया और फांसी की सजा दे दी गई।

लंबे समय तक जब नजीर घर नहीं लौटे तो इनके परिवार ने इन्हें शहीद समझ लिया. एक दफा अंग्रेज नजीर को ट्रेन से हावड़ा से दिल्ली ले जा रहे थे. नजीर ने चुपके से एक पेपर पर अपने सकुशल होने की चिट्ठी लिखी और जैसे ही दिलदारनगर जंक्शन आया खिड़की से कागज फेंक दिया. जिसके बाद उनके घरवालों तक उनकी जानकारी पहुंची।

बिमल राय ने नजीर को फिल्मी दुनिया में इंट्रोड्यूस किया था. इसके बाद बॉलिवुड में नज़ीर ने ‘परिणीता’, ‘जीवन ज्योति’, ‘मुसाफिर’, ‘अनुराधा’, ‘साहिब बीवी और गुलाम’, ‘नया दौर’, ‘कटी पतंग’, ‘कश्मीर की कली’ जैसी कई फिल्मों में छोटे बड़े किरदार निभाए।

भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की 1960 में नजीर से मुलाकात हुई थी. तब उन्होंने नजीर से भोजपुरी सिनेमा की तरफ पहल करने की बात कही थी. इसके बाद नजीर हुसैन 1963 में पहली भोजपुरी फिल्म गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ाइबो लेकर आए. इसके बाद से भोजपुरी में कई फिल्में बनने लगीं. यही वजह है कि नजीर को भोजपुरी सिनेमा का पितामह कहा जाता है।

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