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इस अभिनेत्री ने निभाया था रामायण में माँ शबरी का किरदार

रामानंद सागर की ‘रामायण’ खासतौर पर सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। 1986- 1988 के बीच प्रसारित हुए इस सीरियल के एक्टर्स को लोग उनके असली नाम की जगह किरदार के नामों से ही जानने लगे। ये सीरियल इतना पॉपुलर था कि रामानंद सागर की रामायण का एक-एक किरदार लोगों को आज भी याद है। लेकिन क्या आपको वो दृश्य याद है, जिसमें शबरी श्रीराम को अपने जूठे बेर खिलाती है। इस दृश्य को लोग कभी नहीं भूलते, लेकिन माता शबरी का किरदार निभाने वालीं अभिनेत्री सरिता देवी को शायद कम ही लोग जानते होंगे।

22 की उम्र में शुरू किया करियर सरिता देवी का जन्म 23 नवंबर 1925 को जोधपुर में हुआ था।  सरिता राजस्थान की पहली फिल्म चरित्र अभिनेत्री थीं। उन्होंने आजादी के वर्ष 1947 में 22 साल की उम्र में अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की। उन्होंने अपनी पहली फिल्म ‘तोहफा’ में नायिका अनुराधा की मां की भूमिका निभाई। यहां से उनके फिल्मी सफर का सिलसिला चल पड़ा। सरिता ने फिल्म टैक्सी ड्राइवर में देव आनंद की मां बनीं वहीं ‘लव मैरिज’ में माला सिन्हा की चाची। इसके अलावा ‘देवदास’ (1955) में पारो की दादी के किरदार में नजर आईं। जबकि फिल्म ‘परिणीता’ (1953) में उन्होंने भाभी की भूमिका निभाई। ‘आई मिलने की बेला’ में बुआ का किरदार निभाया और ‘आए दिन बहार के’ में मौसी की भूमिका की।

सरिता ने राजकपूर, दिलीप कुमार, धर्मेंद्र, देवानंद, मनोज कुमार, अशोक कुमार, शम्मी कपूर, अमिताभ बच्चन जैसे सितारों के साथ काम किया।  यही नहीं सरिता को उनकी अनूठी संवाद अदायगी के चलते सात रूसी फिल्मों को हिन्दी में डब करने के लिए चुना गया था। साथ ही रूसी फिल्म ‘पेडेनिये बर्लिना’ के लिए डायमंड पिक्चर्स की ओर से उन्हें सम्मानित भी किया गया। उन्होंने हिंदी सिनेमा के साथ साथ राजस्थानी फिल्मों सहित ब्रज, बंगाली, हरियाणवी और भोजपुरी फिल्मों में भी काम किया। 

सरिता देवी ने लगभग 300 फिल्मों में काम किया।  हालांकि, उन्हें बड़ी पहचान रामानंद सागर के टीवी धारावाहिक ‘रामायण’ की छोटी भूमिका से मिली। रामायण में वह सबरी के किरदार में नजर आईं।  जबकि धारावाहिक श्रीकृष्ण में वे फल बेचने वाली एक गरीब महिला का किरदार निभाया था।  साल 2001 में लंबी बीमारी के कारण उनका निधन हो गया। कहा जाता है कि सरिता देवी ने कभी अपनी फिल्में नहीं देखीं। उन्होंने अपनी दो राजस्थानी फिल्में ‘बाबा री लाडली’ और ‘बाबा रामदेव’ जरूर 30-32 साल बाद तब देखीं जब राजस्थानी फिल्म उद्योग के स्थापना की गोल्डन जुबली मनाने के लिए 1993 में जोधपुर में राजस्थानी फिल्म महोत्सव आयोजित किया गया। इस समारोह में उन्हें सम्मानित भी किया गया।

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