देव आनंद साहब एक महान कलाकार रहे। उनकी अदाकारी के कायल सिर्फ भारतीय ही नही विदेशी भी रहे। उन्होंने और उनके भाई विजय आनंद ने नवकेतन बैनर की शुरआत की। इन दोनो ने गाइड , ज्वेल थीफ, हम दोनों, काला बाजार इत्यादि जैसी सफल फिल्मों का निर्माण किया । गाइड तो आज भी महान फिल्मों में गिनी जाती है। लेकिन इसके बाद न जाने क्या हुआ विजय आनंद की जगह देव आनंद ने खुद निर्देशन की कमान संभाल ली। सिर्फ हरे रामा हरे कृष्णा ही देव आनंद के निर्देशन में हिट साबित हुई। इसके अलावा देस परदेस, प्रेम पुजारी, लूटमार, हीरा पन्ना, इश्क इश्क इश्क, अव्वल नंबर, स्वामी दादा, सच्चे का बोलबाला, सौ करोड़, प्यार का तराना, मैं सोलह बरस की, सेंसर इत्यादि करीब 25 फ्लॉप का निर्माण किया। भारतीय फिल्म इतिहास में लगातार इतनी फिल्मों के लगातार फ्लॉप का निर्माण शायद ही किसी ने किया हो। माना कुछ फ्लॉप फिल्मों का विषय सच्ची घटना और समाज से जुड़ा रहा। जैसे की सौ करोड़, देस परदेस, सेंसर इत्यादि। कुछ कलाकार उनकी फिल्मों में पहली बार भी दिखे जो आगे चलकर बड़े कलाकार बने जैसे की तब्बू, जैकी श्रॉफ, अमरीश पुरी, टीना मुनीम l अब जिधर देव आनंद ने अपने निर्देशन में इतनी फ्लॉप फिल्मे दी, उधर उनके भाई विजय आनंद ने नवकेतन के बाहर के बैनर की फिल्मों का भी निर्देशन करके हिट फिल्में दी , जैसे की : तीसरी मंजिल, जॉनी मेरा नाम, कोरा कागज़, ब्लैक मेल, मैं तुलसी तेरे आंगन की। बेशक उनकी आखरी दो फिल्में राम बलराम और राजपूत नही चली। लेकिन सोचने वाली बात ये है की जब देव आनंद विजय आनंद के निर्देशन में इतनी अच्छी और सफल फिल्मों कर रहे थे तो अपने ही निर्देशन में कुछ फिल्म फ्लॉप होने के बाद भी उन्होंने विजय आनंद जैसे सफल निर्देशक भाई को निर्देशन की कमान क्यों नहीं सौंपी ? अगर देखा जाए तो नवकेतन के निर्माण के बाद देव आनंद ने दूसरे बैनर की फिल्मे भी ज्यादा नहीं की। अगर इतनी फ्लॉप फिल्म में जो पैसा बर्बाद हुआ वो कुछ अच्छी फिल्में विजय आनंद के निर्देशन में बना लेते तो आज वो भी राज कपूर और यश चोपड़ा जैसे सफल फिल्ममेकर में गिने जाते।