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श्याम जो 40-50 के दशक के सुपरस्टार बन कर उभरे थे ,बहुत ही सफल करियर के बाद उनकी चमक चारो ओर फेल गयी थी

हिंदी सिनेमा के देदीप्यमान आकाश मे कई सितारे चमकते है कुछ तो वर्षो तक चमकते रहते है पर कुछ बहुत अधिक चमकने के बाद कही खो जाते है।


आज हम ऐसे ही एक सितारे की बात करने जा रहे है जो एक समय इतना चमका था की बड़े बड़े सितारे उसकी रौशनी के आगे फीके पड़ गये थे। पर अचानक उस तारे को वक़्त का ऐसा ग्रहण लगा की वह आसमान मे कही गुम हो गया।

उस सितारे का नाम है श्याम जो 40-50 के दशक के सुपरस्टार बन कर उभरे थे । पर बहुत ही सफल करियर के बाद जब उनकी चमक चारो ओर फेल रही थी तभी मात्र 31 वर्ष की अल्प आयु मे उनके जीवन का सूर्य अस्त हो गया। आज की पीढ़ी उनके नाम से भी अनजान है। आज हम बात करने जा रहे है उसी महानायक श्याम के जीवन के बारे मे
श्याम का असली नाम श्याम सुंदर चड्ढा था।उनका जन्म अविभजित् भारत के सियालकोट मे 20 फरबरी 1920 मे हुआ था। इनके पिता सीताराम चड्ढा सेना मे कार्यरत थे तथा माता चरण देवी एक ग्रहणी थी । श्याम 4 भाई ओर 1 बहन मे सबसे बड़े थे। बाल्यकाल मे ही माताजी के देहांत के कारण भाई बहनो की ज़िम्मेदारी इनके नाजुक कंधो पर आ गयी।इन्होने रावल्पिंडी के गार्डन कॉलेज से अपनी शिक्षा पुरी की। स्कूल के समय से ही इनकी नाटको मे रुचि थी आप ड्रामेटिक सोसाइटी ऑफ गार्डन कालेज के आध्यक्ष थे। 1941 मे इन्होने अंग्रेजी व उर्दू मे अखबारों मे लेख लिखने शुरु किए।
उस समय के अधिकांश परिवारों की भांति इनके परिवार मे सिनेमा को हेय दृष्टि से देखा जाता था। इनके पिताजी इनके फिल्मो में काम करने के सख्त विरोधी थे।पर इनके चाचा ताराचंद चड्ढा के समझाने पर वह मान गये तथा अगले ही दिन बम्बई के लिए रवाना हो गये वहाँ इन्होने बॉम्बे स्टूडियो मे ऑडिशन दिया पर सफल ना हो सके पर मशहूर निर्देशक G K Nanda के सहायक नियुक्त हो गये।
कुछ माह बम्बई मे गुजारने के बाद वापस लाहौर आ गये जहा इन्हे पहली पंजाबी फिल्म गवांडी मिली इस फिल्म मे उनके साथ उस ज़माने की मशहूर अदाकाराए वीणा ओर मनोरमा थी फिल्म 1941 में प्रदर्शित हुई ओर कमाल हिट रही गवांडी की सफलता के बाद इन्होने रूम नबर 1, मन की जीत समेत कई सुपरहिट फिल्मे देकर सुपरस्टार का तमगा पा लिया। पर उन्ही दिनों विभाजन के बादल मंडराने लगे थे। यह समय आम आदमी के साथ सिनेमा उद्योग के लिए भी काला अध्याय था। यहा इन्हे भारत या पाकिस्तान में एक को चुनना की इन्होने भारत को चुना ओर बम्बई आ गये ये वापस बॉम्बे स्टूडियो गये ये वही स्टूडियो था ज़हाँ से ये पहले नकार दिए गये थे पर अब समय बदल चुका था श्याम पंजाब के सुपरस्टार रह चुके थे इसी कारण इन्हे फिल्म मज़बूर में उस ज़माने की मशहूर अदाकारा मुनव्वार सुल्ताना के साथ नायक की भूमिका मिली यह फिल्म 1948 में प्रदर्शित होकर उस समय की बड़ी हिट बनी उसके बाद इन्होने पीछे मुड़ कर नही देखा साल दर साल पतंगा, दिल्लगी ,बाज़ार,समाधी जैसी कई हिट फिल्मे देकर उस समय के सबसे बड़े सुपरस्टार बन कर उभरे, उस ज़माने की प्रसिद्ध फिल्म पत्रिका फ़िल्मी इंडिया के मशहूर लेखक बाबू राव पटेल ने इनको अशोक कुमार व मोतीलाल का उत्तराधिकारी भी कहा। आप स्वय समझ सकते हैं की अगर किसी कलाकार की तुलना इतने महान कलाकारों से की ज़ा रही हो तो वह स्वय कितना महान कलाकार होगा।

इन पर फिल्माये गये कुछ गीत जो आज भी लोगो की ज़बान पर है पर आज की पीढ़ी को उन पर फिल्माये गये उस स्टार कलाकार के बारे मे नही पता


1 तू मेरा चांद मे तेरी चांदनी
2 गोरी गोरी बांकी छोरी
3 तेरे कुचे मे

पारिवारिक जीवन


बात करे इनके परिवारिक जीवन की तो इनका विवाह 1940 मे मुमताज़ कुरैशी के साथ हुआ था।जो एक प्रेम विवाह था।
25 अप्रैल 1951 का वो मनहूस दिन जब फिल्म शविस्तान की शूर्टिंग चल रही थी climex का दृश्य चल रहा था श्याम उसमे घुड्सावारी कर रहे थे ओर उनके पीछे अन्य घोड़े थे दुर्भाग्यवश श्याम घोड़े से फिसल गये तथा पीछे दौड़ने वाले अन्य घोड़े उनके सर के उपर से गुज़र गये जिसके फलस्वरूप उनकी तत्काल मृत्यु हो गयी।


आज हम उन्ही महान कलाकार को अपने लेख के ज़रिये श्रद्धा सुमन अर्पित करते है।🙏🙏

लेख -Praval Deep

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