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अनवर :एक गायक एक वक्त जिनकी तुलना मोहम्मद रफ़ी से की जाने लगी थी (1 फरवरी ,जन्म दिन विशेष )

1 फरवरी 1949 के दिन मुंबई में जन्मे अनवर हुसैन को संगीत उनके पिता की विरासत थी। उनके पिता आशिक़ हुसैन संगीतकार ग़ुलाम हैदर के असिस्टेंट हुआ करते थे।अनवर में बचपन से ही संगीत में रूचि देखते हुए उनके पिता ने संगीत की शिक्षा देने के लिएंउस्ताद अब्दुल रहमान खान के पास संगीत की शिक्षा के लिए ले गए। उस्ताद अब्दुल रहमान खान वो है जिन्होंने महेंद्र कपूर साहब को भी संगीत की शिक्षा दी थी।अनवर की आवाज महान गायक रफी साहब से मिलती जुलती थी तब क्या था अनवर ने कई कॉन्सर्ट में मोहम्मद रफ़ी के गाये हुए गाने शुरू कर दिये। ऐसे ही कई शादियों और पार्टियों में गाते हुए इनकी आवाज़ संगीतकार कमल राजस्थानी ने सुनी और बेहद प्रभावित हुए। फिर क्या था, अनवर साहब को साल 1973 की फिल्म ‘मेरे गरीब नवाज़’ में गाने का मौका मिला। इनका गाया हुआ गीत जब मोहम्मद रफ़ी साहब ने सुना तो वो भी हैरान रह गये और बोले कि अगर मेरे बाद कोई मेरी जगह लेगा तो वो ये गायक होगा। अनवर को प्रसंशा तो मिली मगर वो कामयाबी नहीं मिल पायी जो इन्हें मिलनी चाहिए थी।
अनवर जी ने बतौर प्लेबैक सिंगर उस दौर में बॉलीवुड में अपने कदम रखे, जब मोहम्मद रफ़ी, किशोर कुमार, मन्ना डे और महेंद्र कपूर जैसे दिग्गज गायकों का बॉलीवुड में सिक्का चल रहा था। ऐसे मोहम्मद रफ़ी से मिलती जुलती आवाज़ के साथ उस दौर में अपना सिक्का ज़माना कोई आसान काम नहीं था। 1977 में इनकी मुलाकात मशहूर अभिनेता और निर्माता-निर्देशक महमूद साहब से हुई। इनकी आवाज़ सुनकर उन्होंने इन्हें अपनी फिल्म ‘जनता हवलदार’ में गाने का मौका दिया। अनवर साहब के इस फिल्म में गाये गाने सुपर-डुपर हिट हुए। इस फिल्म के बाद अनवर साहब को बेहद प्रसिद्धि मिली। इन्होंने इसके बाद लता जी से लेकर अलका याग्निक तक के साथ और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल से लेकर अन्नू मलिक तक के सुरों पर गीत गाये। अनवर के कुछ चंद गाने जो काफी लोकप्रिय हुए
हम से का भूल हुई, जो ये सज़ा हम का मिली (फ़िल्म: जनता हवलदार)
नज़र से फूल चुनती है (फ़िल्म: अहिस्ता अहिस्ता)
मोहब्बत अब तिजारात (फिल्म: अर्पण)
जिंदगी इम्तिहान लेती है (फिल्म: नसीब)
हाथों की चंद लकीरों का (फिल्म: विधाता)
कहाँ जाते हो रुक जाओ (फिल्म: दूल्हा बिकता है)
कोई परदेसी आया परदेस में (फिल्म: हम हैं लाजवाब)
एक समय ऐसा आया जब इनकी आवाज़ को बॉलीवुड ने दरकिनार करना शुरू कर दिया गया। कारण था, जब साल 1980 मोहम्मद रफ़ी साहब की मृत्यु हो गयी। और अनवर खुद को रफ़ी समझते हुए ज्यादा पैसों की मांग करने लगे। जिसकी वजह से उन्हें बहुत से गीतों से हाथ धोना पड़ा।अनवर ने अपनी यह गलती किसी शो में बताई थी निर्देशक मनमोहन देसाई अपनी फिल्म ‘मर्द’ में अमिताभ बच्चन जी के लिए गाने गवाना चाहते थे, पर इनकी डिमांड के कारण वो मौका शब्बीर कुमार को मिल गया। ऐसे ही निर्माता-निर्देशक राज कपूर साहब ने इन्हें अपनी फिल्म प्रेम रोग में गाने का मौका दिया, तब भी इसी कारण से वो गानें सुरेश वाडकर की झोली में चले गये और इस तरह से अनवर साहब फिल्म इंडस्ट्री से गायब होने लग गये। और 90 का दशक आते-आते कुमार सानू और उदित नारायण जैसे गायकों ने अपने पैर ज़माने शुरू कर दिए।तब फ़िल्मी दुनिया ने अनवर साहब से एकदम से किनारा कर लिया। बॉलीवुड में काम मिलना बंद हुआ तो अनवर साहब अमेरिका चले गये और वहां उन्होंने अपना म्यूजिक इंस्टिट्यूट खोलने के बारे में सोचा और लोन लेकर ‘तोहफा’ नामक एक म्यूजिक एल्बम भी बनाया। वो एल्बम नहीं चल पाया और अनवर लोन भी नहीं चूका पाए और इनका मुंबई का घर जब्त कर लिया गया। एक ऐसा दौर भी आया जब इन्हें अपने परिवार के पालन पोषण के लिए बियर बार में गाना पड़ा। आपको बता दें कि गुमनामी में खो गए अनवर हुसैन फिल्म अभिनेत्री आशा सचदेव और अभिनेता अरशद वारसी के सौतेले भाई हैं। मगर इनसे अनवर को कभी कोई मदद नहीं मिली। आखिरकार बेरहम फिल्म इंडस्ट्री में जो होता है उगते सूरज को सभी नमस्कार करते है अस्त सूरज को कोई पूछता भी नही। अनवर के साथ भी यही हुआ ये प्रतिभाशाली गायक गुमनामी में चला गया अनवर जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई। 🎉🥳🎉🥳🎉🥳🎉

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