प्रकाश झा ऐसे भारतीय फ़िल्मकार है जो हिंदी सिनेमा में सामाजिक मुद्दे पर फ़िल्में बनाने के लिए जाने जातें हैं। उन्होंने साल 1984 में फ़िल्म ‘हिप हिप हुर्रे से हिंदी सिनेमा में अपना निर्देशन डेब्यू किया। वही दामूल फ़िल्म की पृष्ठभूमि बिहार के बंधु मजदूर पर आधारित थी । प्रकाश की पहली ही फ़िल्म को राष्ट्रीय सम्मान से नवाजा गया। उसके बाद उन्होंने और भी अवॉर्ड विनिंग डॉक्युमनेटरीज का निर्देशन किया। प्रकाश झा जो फ़िल्मों के माध्यम से सामाजिक-राजनीतिक बदलाव की उम्मीदें लेकर हर बार बॉक्स ऑफिस पर हाजिर होते हैं। उनके साहस और प्रयासों की इस मायने में प्रशंसा की जाना चाहिए कि सिनेमा की ताकत का वे सही इस्तेमाल करते हैं।अपनी पहली फिल्म ‘दामुल’ के जरिये गाँव की पंचायत, जमींदारी, स्वर्ण तथा दलित संघर्ष की नब्ज को उन्होंने छुआ है। इसके बाद सामाजिक सरोकार की फिल्में बनाईं। बाद में मृत्युदण्ड, गंगाजल, अपहरण और अब राजनीति (2010 फ़िल्म) लेकर मैदान में उतरे हैं। अपने बलबूते पर उन्होंने आम चुनाव में उम्मीदवार बनकर हिस्सा लिया है। ये बात और है कि वे हर बार हार गए। भ्रष्ट व्यवस्था तथा राजनीति की सड़ांध का वे अपने स्तर पर विरोध करते हैं। यही विरोध उनकी फिल्मों में जीता-जागता सामने आता है। मृत्युदंड से लेकर अपहरण तक उनकी फिल्मों को दर्शकों ने दिलचस्पी के साथ देखा और सराहा है।
मध्यम परिवार से तालुक रखने वाले प्रकाश झा का जन्म 27 फ़रवरी, 1952 को चंपारण, बिहार में हुआ था । प्रकाश झा का पालन-पोषण बड़हरवा, बेतिया, पश्चिम चंपारण, बिहार में उनके परिवार के पुश्तैनी गांव (बड़हरवा) में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री तेजनाथ झा है जो एक उच्च प्रशासनिक अधिकारी थे।प्रकाश झा ने अपनी पढ़ाई बोकारो शहर के केंद्रीय विद्यालय नं. 1 और कोडरमा जिले के तिलैया में स्थित सैनिक स्कूल से की। इसके बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से अपनी ग्रेजुएशन पूरी की। लेकिन उस दौर में उनकी रूची पेंटिंग की ओर बढ़ने लगी। इसके बाद उन्होंने मुंबई जाकर पेंटर बनने का निर्णय लिया। इसी के चलते साल 1973 में फ़िल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट में दाखिला ले लिया इसके माध्यम से, छात्र आंदोलन के कारण संस्थान को कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया था, इसलिए वह बॉम्बे आ गया, काम करना शुरू कर दिया, और पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए कभी वापस नहीं जा सकें।
प्रकाश झा ने अपने कॅरियर की शुरुआत डॉक्यूमेंट्री ‘अंडर द ब्लू’ से की थी। लेकिन उनके काम को सराहना तब मिली, जब उन्होंने बिहार के दंगों के ऊपर एक शार्ट फ़िल्म बनाई। हालांकि रिलीज होने के कुछ दिन बाद ही फ़िल्म बैन हो गई; पर प्रकाश झा को इस शार्ट फ़िल्म के लिए ‘नेशनल अवार्ड’ से नवाजा गया। लेकिन इस दौर के बीच एक दौर ऐसा भी आया, जब उन्हें अपनी जिंदगी में परेशानियों का सामना करना पड़ा। उनके संघर्ष भरे दिनों में उनके पास घर का किराया और खाने तक के पैसे नहीं थे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जब प्रकाश झा मुंबई गए तो उनके पास च्यादा पैसे नहीं थे। ऐसे में उनकी कई रातें जुहू बीच के फुटपाथ पर गुजरी थीं।
मालूम होना चाहिए की निर्देशक प्रकाश झा ने 1989 में, कल्ट कॉमेडी धारावाहिक ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’ बनाई थी जो दूरदर्शन टीवी पर प्रसारित हुई और काफी पापुलर भी हुआ था जिसमे अभिनेता रघुवीर यादव मुख्य पात्र थे
1990 के दशक की शुरुआत में, कला फिल्मों में मंदी थी, जिसके बाद वे मुंबई से बिहार चले गए और लगभग 3 साल तक यह सोचकर रहे कि वे व्यावसायिक फिल्में बनाने में सक्षम नहीं हैं।1999 में, उन्होंने अजय देवगन और काजोल अभिनीत अपनी पहली व्यावसायिक फिल्म ‘दिलक्या करे’ बनाई।
साल 2003 में रिलीज हुई फ़िल्म ‘गंगाजल’ ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा दिया था। इस फ़िल्म को करने के बाद अजय देवगन की छवि सख्त पुलिस वाले की बन गई जो आज तक बरकरार है। फ़िल्म को प्रकाश झा ने डायरेक्ट किया था। इस फ़िल्म को नेशनल अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया। फ़िल्म में अभिनेता अजय देवगन एसपी का किरदार निभा रहे थे। फ़िल्म की कहानी अपराधियों को सजा के तौर पर आंख में तेजाब डालने की सच्ची घटना से प्रेरित थी।
एक बार फिर प्रकाश झा ने अजय देवगन के साथ फ़िल्म की । नाम था ‘अपहरण’। प्रकाश झा की इस फ़िल्म को न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में सराहना मिली। एक पुस्कार लेने ग्रीस गए फ़िल्म निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा उस समय आश्चर्यचकित रह गए, जब उनकी फ़िल्म ‘अपहरण’ को वहां की जनता से काफी सराहना मिली। अपहरण बिहार की राजनीति और अपराध के बीच गठजोड़ पर आधारित फ़िल्म थी।
अपहरण के 5 साल बाद एक फ़िल्म आई ‘राजनीति’। इस फ़िल्म में कैटरीना कैफ, अजय देवगन, रणबीर कपूर, अर्जुन रामपाल, मनोज बाजपेयी एवं नाना पाटेकर मुख्य भूमिका में थे। फ़िल्म पर सेंसर बोर्ड का कैंची चलाना और उसके बाद ‘ए’ सर्टिफिकेट दिए जाने पर विवाद उठना, कैटरीना कैफ का सोनिया गाँधी के लुक में दिखना, आदि ने राजनीति को रिलीज होने से पहले ही काफी पॉपुलर कर दिया था।
राजनीति के एक साल बाद यानि साल 2011 में आई फ़िल्म ‘आरक्षण’। इस फ़िल्म से प्रकाश झा ने एक गंभीर मुद्दा उठाया। वो था आरक्षण का । प्रकाश झा निर्देशित आरक्षण की कहानी में शिक्षा व्यवस्था में अवसर की असमानता और निजी व्यावसायिक हितों के लिए शिक्षा के आदर्शों की बलि जैसे गंभीर कथ्य को बुना गया था।
. 1991 में, उन्होंने ‘अनुभूति’ की स्थापना की, जो एक पंजीकृत सोसायटी है जो बिहार में सांस्कृतिक विकास, स्वास्थ्य देखभाल में सुधार, आपदा प्रबंधन और किसानों और सामाजिक- आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों की बेहतरी के लिए काम कर रही है
उन्होंने माधुरी दीक्षित, शबाना आज़मी और ओम पुरी अभिनीत ‘मृत्युदंड’ (1997) के साथ अपनी पहली सफलता का स्वाद चखा।
इसके बाद प्रकाश झा ने फ़िल्म ‘सत्याग्रह’ निर्देशित की। इस फ़िल्म में अजय देवगन, करीना कपूर, ईशा गुप्ता और अमिताभ बच्चन मुख्य भूमिका में नजर आये थे । फ़िल्म की शूटिंग भोपाल में हुई थी।
प्रकाश झा ने साल 1985 में बॉलीवुड अभिनेत्री दीप्ति नवल से विवाह किया। इसके कुछ साल बाद ही उन्होंने एक बेटी को गोद लिया, जिसका नाम है दिशा । साथ ही प्रकाश झा के एक बेटा भी है प्रियरंजन, लेकिन अफसोस दीप्ति नवल से उनके संबंध कुछ सालों बाद ही खराब हो गए और इसी के चलते दोनों ने 2005 में तलाक ले लिया।अगर वह फिल्म निर्माता नहीं होते, तो वह एक चित्रकार होते।
उनकी कुछ मुख्य फ़िल्में इस प्रकार हैं-
बतौर लेखक
2003 गंगाजल
बतौर अभिनेता
2016 जय गंगाजल
बतौर निर्देशक
2013 सत्याग्रह
2011 आरक्षण
2010 राजनीति
2005 अपहरण
2003 गंगाजल
1999 दिल क्या करे
1997 मृत्युदंड
1996 बंदिश
2013 सत्याग्रह